दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बड़े मामले पर सुनवाई करते हुए साफ-साफ कहा है कि अगर पति की सैलरी या रोजमर्रा के खर्चों में इजाफा होता है, तो अलग रह रही पत्नी का गुजारा भत्ता बढ़ाना भी बेहद जरूरी हो जाता है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह साफ किया कि पति की आय या पेंशन में बढ़ोतरी होने पर यह पत्नी के गुजारा भत्ता बढ़ाने का मजबूत आधार बन जाता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह टिप्पणी कोर्ट ने एक बुजुर्ग महिला की याचिका पर फैसला सुनाते हुए की। महिला ने अपनी याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके अलग रह रहे पति द्वारा गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग को खारिज कर दिया गया था।
रिटायर होने के बाद भी बढ़ाना होगा गुजारा भत्ताजस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि जीवनयापन की बढ़ती लागत और पति की सैलरी में इजाफा जैसी चीजें गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए सही वजह हैं। कोर्ट ने साफ कहा कि पति की आय में बढ़ोतरी और जीवनयापन के खर्चों में इजाफा, परिस्थितियों में बदलाव का स्पष्ट संकेत है, जिसके चलते गुजारा भत्ता बढ़ाना जरूरी हो जाता है। कोर्ट ने आगे जोड़ा कि भले ही पति अब रिटायर हो चुके हैं और एक वरिष्ठ नागरिक हैं, लेकिन पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सक्षम बनाने हेतु एक संतुलन बनाना चाहिए। कोर्ट ने फैसला दिया कि गुजारा भत्ता में मामूली बढ़ोतरी से यह संतुलन बना रहेगा।
इस जोड़े की शादी 1990 में हुई थी और पत्नी 1992 से अलग रह रही थी। उसने दावा किया कि पति और ससुराल वालों की दहेज प्रताड़ना से तंग आकर उसने घर छोड़ दिया था। 2011 में तलाक की अर्जी खारिज हो गई, इसलिए यह जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित रहा। 2012 में, एक फैमिली कोर्ट ने पत्नी को पति से हर महीने 10,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।
2018 में, महिला ने इस गुजारा भत्ता को बढ़ाकर 30,000 रुपये करने की मांग की। उसने अपने इलाज के खर्चों का हवाला दिया और बताया कि प्रमोशन और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से उसके पति का वेतन बढ़ गया था।
पति आधिकारिक तौर पर 2017 में रिटायर हो गए थे, लेकिन वे दो साल के लिए सर्विस एक्सटेंशन पर काम करते रहे। पत्नी ने बताया कि पहले उसके पिता उसे काफी मदद देते थे, लेकिन 2017 में पिता का निधन हो गया, जिससे इलाज के खर्चों के लिए उसे ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ गई। 2024 में, फैमिली कोर्ट ने गुजारा भत्ता बढ़ाने की उसकी याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उसने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज करते समय पति के वेतन में बढ़ोतरी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था।
अदालत ने कहा कि इस बात को पूरी तरह से अनदेखा किया गया कि 2012 में पति की नेट इनकम सिर्फ 28,705 रुपये मानी गई थी और इसी आधार पर याचिकाकर्ता को 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता तय किया गया था। आज उसकी पेंशन 40,068 रुपये प्रति माह है, जो स्पष्ट बढ़ोतरी है और इस राशि से कोई कटौती नहीं की जानी थी। अदालत ने पति के केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) कार्ड से पत्नी का नाम हटाए जाने पर भी चिंता जताई।
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