झाबुआ, 1 सितम्बर (Udaipur Kiran) । अहंकार मनुष्य के जीवन में आने वाली एक बड़ी बाधा है। यह न केवल आध्यात्मिक यात्रा को अवरुद्ध कर देता है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जीवन को भी चुनौती पूर्ण बना देता है, क्योंकि अहंकार का मद किसी भी तथ्य या विचार को सहज में स्वीकार करने हेतु तत्पर नहीं हो सकता है।
यह विचार डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने सोमवार को मध्य प्रदेश के जनजातीय बाहुल्य झाबुआ जिले के थान्दला में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अन्तर्गत आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव के प्रथम दिन स्थानीय श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर सभागार में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यक्त किए। शर्मा श्रीमद्भागवत में उल्लेखित राजा परीक्षित को दिए शाप का कथा प्रसंग वर्णन कर रहे थे।
शर्मा ने कहा कि राजमद में महाराज परीक्षित को ध्यानयोगी तपोनिष्ठ शमीक मुनि भी ढोंगी दिखाई पड़े, ऐसे में उनका अहंकार जागृत हो गया, और उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया। परिणामस्वरूप उन्हें ऋषि पुत्र श्रृंगी के शाप का भाजन बनना पड़ा। पौराणिक आख्यानों में वर्णित ऐसे कितने ही राजा हुए जिन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करते हुए स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया, और अंततः वे पतन के गर्त में समा गए।
उन्होंने कहा कि यह अहंकार ही है जो मन को कलुषित कर देता है, और कलुषित मन से आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश की बात तो दूर व्यावहारिक जीवन में भी अनावश्यक रूप से विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अहंकार के मद में चूर कपटपूर्ण हृदय कदापि भगवान् का निवास स्थान नहीं हो सकता। ईश्वर की उपस्थिति का एहसास प्रेमपूर्ण हृदय में ही हो सकता है, इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अपने जीवन में अहंकार युक्त कपट पूर्ण व्यवहार को किंचित भी स्थान न दें, और सबके प्रति दयाभाव रखते हुए स्वभाव को सरल बनाने रखें।
आज कथा में भगवान् के अवतारों का वर्णन एवं सृष्टि क्रम वर्णन सहित हिरण्याक्ष उद्धार की कथा भी कहीं गई।
(Udaipur Kiran) तोमर
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