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सीपीआर के प्रशिक्षण से 70 प्रतिशत घर हो सकते हैं सुरक्षित : डीसी

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रामगढ़, 4 जुलाई (Udaipur Kiran) । हमारे समाज में हार्ट अटैक, कार्डियक अरेस्ट और इमरजेंसी की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इस इमरजेंसी में आम नागरिक हमेशा अस्पताल और मेडिकल सेंटर का आश्रय लेते हैं। लेकिन मरीज को 20 मिनट के गोल्डन आवर में फर्स्ट एड की जरूरत होती है। इससे उसकी जान बच सकती है। यही वह समय है जिसमें आपदा मित्र की जरूरत पड़ेगी। इसी उद्देश्य से जिले में फर्स्ट एड को लेकर आम लोक नागरिकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह बातें शुक्रवार को टाउन हॉल में आयोजित फर्स्ट एड ट्रेंनिंग के दौरान डीसी फ़ैज़ अक अहमद मुमताज ने कही। उन्होंने कहा कि आम नागरिकों को सीपीआर के बारे में न सिर्फ पता होना चाहिए, बल्कि सीपीआर कैसे दिया जाता है, इसकी ट्रेनिंग भी उन्हें मिलनी चाहिए। इस प्रयास से जिले के 70 फ़ीसदी घर बड़ी आसानी से मेडिकल इमरजेंसी के दौरान सुरक्षित हो सकते हैं। आपदा मित्र का प्रशिक्षण इसीलिए दिया जा रहा है। ताकि, आम जनों और विद्यार्थियों को आपदा मित्र के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। यह सभी आपदा मित्र गांव-गांव जाकर सुरक्षा प्रहरी का निर्माण करेंगे। इससे गांव से लेकर शहर तक लोग फर्स्ट एड की ना सिर्फ जानकारी रखेंगे, बल्कि वे पीड़ितों को राहत भी पहुंचाएंगे।

2500 आपदा मित्र का शुरू हुआ प्रशिक्षण

टाउन हॉल में 2500 आपदा मित्र का प्रशिक्षण शुरू हो गया। पहले दिन 300 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया। अगले 10 दिनों में ढाई हजार लोगों को प्रशिक्षित कर दिया जाएगा। इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में एसपी अजय कुमार, डॉक्टर हिना शादिया के अलावा रामगढ़ सदर अस्पताल के चिकित्सक भी शामिल हुए। डीसी ने कहा कि इस प्रशिक्षण के दौरान सीपीआर, बर्निंग और ब्लीडिंग को लेकर भी उनको प्रशिक्षित किया जाएगा। सबसे ज्यादा तकनीकी ज्ञान सीपीआर को लेकर ही लोगों को दिया जाना है। यह बेहद जरूरी है कि लोग जानें कि किसी मरीज को सीपीआर की जरूरत कब पड़ सकती है। किसी भी व्यक्ति को खेतों में काम करते हुए, घरों में, कार्यालय में, सड़कों पर, किसी कार्यक्रम के दौरान, नदी और तालाब में नहाने के दौरान, दुर्घटना के दौरान हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट हो सकता है। घटना के 15 से 20 मिनट के अंदर अगर उस मरीज को सीपीआर मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है। यह कभी भी किसी के घर और परिवार वालों के साथ हो सकता है। मेडिकल आंकड़ों के अनुसार 70 फ़ीसदी हादसे घरों में ही होते हैं। अगर सीपीआर का ज्ञान ना हो तो लोग अस्पतालों का चक्कर लगाते हैं, जिससे वे अपनों का साथ खो देते हैं।

जब सांस और पल्स बंद हो तब दें सीपीआर

प्रशिक्षण के दौरान चिकित्सकों ने बताया कि जब किसी व्यक्ति की सांस बंद हो जाए और उसका पल्स भी खत्म हो जाए, तब उस मरीज को सीपीआर की जरूरत पड़ती है। सीपीआर के दौरान मरीज की छाती की हड्डी भी टूट सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया दोहराना बेहद आवश्यक है, तभी उसकी जान बच सकती है। लेकिन जिस व्यक्ति को जरूरत ना हो तब सीपीआर देने से उसे परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है। प्रशिक्षण के दौरान 300 मास्टर ट्रेनरों को चिकित्सकों ने इस अंतर के बारे में न सिर्फ समझाया, बल्कि डमी पुतले के साथ उन्हें सीपीआर देने का पूरा प्रशिक्षण दिया।

दो लाख आपदाा मित्र करने की तैयारी शुरू

डीसी ने बताया कि जिले में दो लाख आपदा मित्र तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। मौजूदा समय में मेडिकल इमरजेंसी कभी भी हो सकती है। लेकिन अगर आम नागरिकों को फर्स्ट एड देना आता हो तो लोग अपने परिजनों और करीबियों को मौत के मुंह से खींच कर ला सकते हैं। फर्स्ट एड में हुई देरी आपके करीबियों को आपसे हमेशा के लिए दूर भी कर सकता है।

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(Udaipur Kiran) / अमितेश प्रकाश

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