——शिवलिंग का स्पर्श पीठाधीश्वर, अर्चक और पुजारी के अलावा कोई भी नही कर सकता
वाराणसी, 17 जुलाई (Udaipur Kiran) । काशी नगरी को यूं ही नहीं कहा जाता कि “कंकर-कंकर में शंकर बसते हैं”। यहां का हर शिवमंदिर अपनी एक अनोखी गरिमा और धार्मिक महत्व लिए हुए है। इन्हीं में से एक है — राम कृपेश्वर महादेव मंदिर, जो वाराणसी के केदारघाट स्थित करपात्री धाम में स्थित है। इस मंदिर की स्थापना धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ने वर्ष 1970 में की थी। यहां विराजमान राम कृपेश्वर महादेव का शिवलिंग अत्यंत शक्तिशाली और चमत्कारिक माना जाता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से दर्शन-पूजन करने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
—अद्वितीय नियम और मर्यादा
मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि शिवलिंग का स्पर्श केवल आश्रम के पीठाधीश्वर, अर्चक और पुजारी ही कर सकते हैं। सामान्य श्रद्धालुओं को दूर से ही दर्शन-पूजन करना होता है। यह परंपरा स्वयं स्वामी करपात्री जी द्वारा स्थापित की गई थी। मंदिर के अर्चक पंडित जनार्दन दुबे बताते हैं कि यह नियम मंदिर की पवित्रता और सुचिता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था। स्वामी करपात्री जी का मानना था कि जब तक कोई पूर्णतः शुद्ध न हो, उसे शिवलिंग का स्पर्श नहीं करना चाहिए — अन्यथा यह आध्यात्मिक दोष का कारण बन सकता है। करपात्री धाम के निवासी पवन ब्रह्मचारी कहते हैं, “स्वामी जी ने मंदिर के प्रत्येक नियम में साधना की गंभीरता और तप की परंपरा को जीवित रखा। यह मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुशासन का केंद्र है।”
—कौन थे स्वामी करपात्री जी महाराज
स्वामी करपात्री जी महाराज, जिनका असली नाम हरिनारायण ओझा था, केवल एक संत ही नहीं बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान और धार्मिक चिन्तक भी थे। वे दशनामी संप्रदाय के संन्यासी थे और उन्होंने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद की स्थापना की थी। उन्होंने एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती को भी शास्त्रार्थ में पराजित किया था। 1966 में गौवध निषेध के समर्थन में उन्होंने दिल्ली में संसद के सामने ऐतिहासिक संत धरना का नेतृत्व किया था, जो भारतीय धार्मिक आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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