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भारत के इस मंदिर को कहते हैं 'कमांडर इन चीफ', यहां कलेक्टर-एसपी भी चढ़ाते हैं शराब, जानें हिस्ट्री से लेकर 'मिस्ट्री'

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भारत की संस्कृति और आस्था का केंद्र मध्य प्रदेश का उज्जैन शहर सदियों से रहस्य और अध्यात्म की भूमि रहा है। यहीं स्थित है काल भैरव मंदिर, जो अपनी अनूठी परंपराओं और चमत्कारों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यह मंदिर शिव के उग्र रूप भैरव बाबा को समर्पित है, जिन्हें उज्जैन का रक्षक और सेनापति माना जाता है। लेकिन इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है — एक ऐसी परंपरा जिसे न तो विज्ञान समझ पाया है और न ही किसी ने चुनौती देने की हिम्मत की।

मंदिर चर्चा में क्यों है?

हाल ही में मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने धार्मिक नगरों में शराबबंदी लागू करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के बाद सवाल उठने लगे कि क्या काल भैरव मंदिर में शराब चढ़ाने की परंपरा पर भी रोक लगेगी? सरकार ने इस पर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि मंदिर में शराब प्रसाद के रूप में चढ़ती रहेगी, क्योंकि यह धार्मिक मान्यता और आस्था से जुड़ा विषय है। यहां कई बार राजनीतिज्ञों से लेकर पुलिस अफसर तक शराब की बोतलें भेंट चढ़ाते हैं — यह भक्ति और सुरक्षा की भावना का प्रतीक बन चुका है।

काल भैरव: उज्जैन के रक्षक देवता

काल भैरव को शिव का उग्र, संहारक रूप माना जाता है। उज्जैन में उन्हें नगर के सेनापति की मान्यता प्राप्त है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, बिना काल भैरव के दर्शन किए महाकाल के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित काल भैरव की मूर्ति को लाल सिंदूर और कुमकुम से सजाया जाता है। यह उनकी शक्ति और तांत्रिक प्रभाव का प्रतीक है। इस मंदिर में हर दिन सैकड़ों भक्त शराब की बोतलें चढ़ाने आते हैं, और चमत्कार यही होता है कि भगवान स्वयं शराब को 'पी' जाते हैं।

रहस्य जो विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया

मंदिर की यह परंपरा केवल अनोखी नहीं, बल्कि विज्ञान के लिए एक चुनौती है। जब भक्त शराब अर्पित करते हैं, पुजारी उसे भगवान के मुख के पास ले जाता है, और कुछ ही क्षणों में शराब गायब हो जाती है। कोई लीक, पाइप, तकनीकी उपकरण आज तक इस प्रक्रिया को साबित नहीं कर पाया। वैज्ञानिकों ने कई बार प्रयास किए कि पता लगाया जाए शराब कहां जाती है, लेकिन अब तक कोई भी निष्कर्ष सामने नहीं आया। भक्त इसे ईश्वर का चमत्कार और तांत्रिक शक्ति का प्रमाण मानते हैं।

इतिहास: परमार से मराठा काल तक की छाया

इस मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने कराया था। परमार काल की स्थापत्य शैली और मराठा काल की पुनर्निर्माण शैली का मिश्रण इस मंदिर में देखने को मिलता है। पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा सेनापति महादजी शिंदे ने इस मंदिर में प्रार्थना की थी, और विजयी होने पर अपनी पगड़ी यहां अर्पित की थी। तभी से मूर्ति पर मराठा शैली की पगड़ी पहनाई जाती है।

पुराणों और तांत्रिक मान्यता में काल भैरव

स्कंद पुराण के अवंति खंड में काल भैरव की पूजा का वर्णन मिलता है। तांत्रिक साधना, कापालिक और अघोरी संप्रदाय में भैरव की विशेष भूमिका है। पंचमकार की अवधारणा (मांस, मत्स्य, मदिरा, मुद्रा, मैथुन) में केवल 'मदिरा' (शराब) ही अब प्रतीकात्मक रूप से अर्पित होती है। अन्य चार अंग आज के युग में प्रतीकात्मक रह गए हैं।

भक्तों की श्रद्धा: समस्याओं से मुक्ति का केंद्र

भक्तों का मानना है कि काल भैरव को शराब चढ़ाने से जीवन की परेशानियां दूर होती हैं, रोग-व्याधि से राहत मिलती है, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। मंदिर में रोज़ हजारों श्रद्धालु आते हैं और शराब अर्पित कर शांति व सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।

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