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दिल्ली के मद्रासी कैंप का ध्वंस: परिवारों की जिंदगी मलबे में तब्दील

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दिल्ली में मद्रासी कैंप का ध्वंस

दिल्ली के जंगपुरा में मद्रासी कैंप का ध्वंस: 1 जून की सुबह, जब बुलडोजर ने झुग्गियों पर कार्रवाई की, तो सैकड़ों परिवारों की जिंदगी पल भर में मलबे में बदल गई। यह कार्रवाई दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा की गई, जिसका उद्देश्य बारापुला नाले की सफाई करना और मानसून से पहले जलभराव को रोकना था।


जानकी और सुमोधी की कहानी

65 वर्षीय जानकी और उनकी बहू सुमोधी, मलबे में बचे कुछ बर्तनों और कपड़ों के बीच बैठकर उस घर को देख रही थीं, जहां उन्होंने अपने जीवन के 50 साल बिताए। जानकी कहती हैं, 'जिस नाले के पास बसा, उसी ने हमें उजाड़ दिया। किसी ने सोचा भी नहीं था कि नाले के पास कोई कुछ बनाएगा।'


पुनर्वास की स्थिति

पुनर्वास की उम्मीद अधूरी, नरेला भेजने पर विरोध: इस बस्ती में 370 परिवार निवास करते थे, जिनमें से 215 को नरेला में फ्लैट दिए गए, जबकि 155 परिवारों को कोई विकल्प नहीं मिला। नरेला के फ्लैटों की स्थिति भी बहुत खराब है। 40 वर्षीय वीरन कहते हैं, 'मैंने वहां के फ्लैट देखे हैं। पाइप, टाइलें सब चोरी हो चुके हैं, पानी-बिजली कुछ नहीं है।'


बच्चों की शिक्षा पर असर

बच्चों की पढ़ाई अधर में, मां-बाप बेबस: 12वीं कक्षा की छात्रा सेल्वी की बेटी दिल्ली तमिल एजुकेशन एसोसिएशन स्कूल में पढ़ती है। वह कहती हैं, 'अब नरेला से आना-जाना संभव नहीं है। इस साल स्कूल बदलना भी नहीं हो सकता।' उनके बेटे की पढ़ाई रामानुजन कॉलेज में है, जो पास में है।


आर्थिक चुनौतियाँ

'7-8 हजार कमाकर किराया कैसे देंगे?' सुमोधी, जो पास के बंगलों में काम करती हैं, सवाल करती हैं, 'हम 7-8 हजार कमाते हैं। भोगल में 12 हजार का किराया कहां से देंगे?' उनके जैसे कई परिवार मजबूरी में भोगल, सराय काले खां और आश्रम में छोटे-छोटे किराए के घरों में रहने को मजबूर हैं। मद्रासी कैंप का यह ध्वंस केवल ईंट-पत्थरों का नहीं था, बल्कि एक पूरी संस्कृति, भाषा और समुदाय की पहचान को मिटा दिया गया। राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया अधूरी है और सवालों के घेरे में है।


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