नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ताओं को बड़ी राहत देते हुए फैसला सुनाया है कि कंज्यूमर फोरम यानी उपभोक्ता फोरम अंतरिम के अलावा अपने सभी आदेश लागू कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा है कि साल 2002 में कानून में संशोधन के ड्राफ्ट में खामियों के कारण उपभोक्ता फोरम की ओर से दिए गए आदेशों को लागू कराने में अंतर आया था। अब कानून की व्याख्या कर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उपभोक्ता फोरम की ओर से 15 मार्च 2003 और 20 जुलाई 2020 के बीच पारित आदेश सिविल कोर्ट की डिक्री की तरह लागू होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि उपभोक्ता संरक्षण एक्ट में 2002 के संशोधन के दौरान प्रत्येक आदेश की जगह अंतरिम आदेश लिख दिया गया। इससे उपभोक्ता फोरम की ताकत सीमित हो गई। जिसकी वजह से उपभोक्ता फोरम को अपने दिए आदेश लागू कराने में दिक्कत होने लगी। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कानून में हुई गलती के बारे में कहा कि इससे उपभोक्ताओं को सार्थक न्याय नहीं मिल पा रहा था। कोर्ट ने कहा कि 1986 के एक्ट की धारा 25 में किसी भी आदेश के प्रवर्तन की मंजूरी के तौर पर पढ़ा जाए। ताकि इसकी मूल स्थिति बहाल हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ताओं को महसूस होना चाहिए कि सिर्फ कागजों में नहीं, वास्तविकता में न्याय मिला है।
सुप्रीम कोर्ट में आया ये मामला पुणे के पाम ग्रोव्स को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में फ्लैट लेने वाले लोगों से जुड़ा था। जिला उपभोक्ता फोरम ने साल 2007 में फ्लैट के बिल्डर को सोसाइटी के पक्ष में कन्वेयंस डीड करने का निर्देश दिया था, लेकिन 2002 के कानून संशोधन का हवाला देकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने उपभोक्ता फोरम के इस आदेश को रद्द कर दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और उसने फ्लैट खरीदारों को न्याय दिलाने वाला आदेश जारी किया। सिर्फ फ्लैट ही नहीं, अब किसी भी सामान को खरीदने वाले उपभोक्ता को सुप्रीम कोर्ट से ताजा फैसले से फायदा होगा।
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