रंगून: म्यांमार में चीन की चाल को मात देने की भारत की योजनाओं को बड़ा झटका लगा है। दरअसल, भारत ने हिंसा प्रभावित म्यांमार के काचिन राज्य से दुर्लभ मृदा तत्वों के आयात की योजना बनाई थी, लेकिन अब इस पर ग्रहण लग गया है। बताया जा रहा है कि काचिन में सेना और विद्रोहियों के बीच भारी युद्ध छिड़ने और ट्रांसपोर्ट में आने वाली मुश्किलों के कारण यह परियोजना खतरे में है। हालांकि, भारत ने म्यांमार से इन तत्वों के आयात का अपना प्लान नहीं छोड़ा है। बता दें कि चीन पूरी दुनिया में दुर्लभ मृदा तत्वों का सबसे बड़ा निर्यातक है। चीन ने हाल में ही इन तत्वों के निर्यात पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे पूरी दुनिया में इनकी डिमांड बढ़ गई है। इस कारण भारत अपनी घरेलू जरूरतों के लिए चीन से निर्भरता घटने की कोशिश कर रहा है।
भारत को क्यों लगा झटकाकेआईए ने भी भारत को भारी मात्रा में दुर्लभ-पृथ्वी निर्यात की संभावनाओं का पता लगाने में रुचि दिखाई है। उसने लागत-व्यवहार्यता अध्ययनों के लिए भारी दुर्लभ-पृथ्वी की गुणवत्ता और मात्रा का आकलन करने के लिए नमूनों की खरीद भी शुरू कर दी है। हालांकि, म्यांमार के सैन्य शासन को भी इस योजना की भनक लग गई है और उसने काचिन में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में स्थित दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के केंद्रों पर भारी हमले किए हैं। इससे इस योजना को झटका लगा है। केआईए के प्रवक्ता नॉ बु ने बताया है कि म्यांमार का सैन्य शासन काचिन में एक प्रमुख दुर्लभ-पृथ्वी केंद्र, 'विशेष क्षेत्र-1' को फिर से प्राप्त करने की योजना बना रहा है।
रेल लाइन से म्यांमार को जोड़ेगा भारतभारत ने म्यांमार से इन दुर्लभ मृदा तत्वों की ढुलाई के लिए मिजोरम के सैरांग तक एक नई रेल लाइन का भी उद्घाटन किया है। इसे भारत की प्रमुख रणनीतिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक माना जा रहा है। इससे न केवल मिजोरम रेल नेटवर्क से जुड़ा है, बल्कि म्यांमार के करीब तक भारत ट्रेन पहुंचाने में सफल हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रेल लाइन भारत को म्यांमार के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों के और करीब ला सकती है।
मिजोरम वाली लाइन को 223 किमी बढ़ाने की योजनाद फेडरल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की योजना रेल लाइन को मिजोरम के लॉन्ग्टलाई जिले में म्यांमार सीमा पर स्थित एक छोटे से शहर हमवंगबुचुआ तक पहुंचाने की है। इसके लिए रेल लाइन की लंबाई 223 किलोमीटर और बढ़ाई जाएगी। यह शहर एक महत्वपूर्ण जंक्शन के रूप में काम करेगा, जो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को म्यांमार के कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना से सड़क मार्ग से जोड़ेगा। यह पूर्वोत्तर भारत को म्यांमार के रखाइन राज्य में स्थित सित्तवे बंदरगाह तक रणनीतिक पहुंच भी प्रदान करेगा।
म्यांमार में हिंसा के कारण परियोजना पर ग्रहणपूरा होने के बाद, इस परियोजना से म्यांमार के साथ भारत के व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। हालांकि, म्यांमार के उत्तर-पूर्व में स्थित काचिन की खदानों से दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों की महत्वपूर्ण मात्रा के परिवहन पर इसका प्रभाव सीमित रह सकता है, क्योंकि म्यांमार के भीतर भारत की सीमा तक उन खनिज पदार्थों के परिवहन के लिए जरूरी सड़क या रेल संपर्क का अभाव है। भारत ने म्यांमार के सैन्य शासन के साथ भी इस परियोजना पर काम करने को लेकर संपर्क किया है।
भारत ने म्यांमार के विद्रोही समूह से की थी बातचीत!रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय खान मंत्रालय ने इस साल जून में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड और हैदराबाद की मिडवेस्ट एडवांस्ड मटेरियल प्राइवेट लिमिटेड को काचिन में खनन स्थलों से दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों के नमूनों की सोर्सिंग और परिवहन की व्यवहार्यता का आकलन करने का काम सौंपा था। यह इलाका वर्तमान में म्यांमार के विद्रोही समूह काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) के नियंत्रण में है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने ऑनलाइन मोड में केआईए के साथ ऑनलाइन चर्चा भी की है।
दुर्लभ-पृथ्वी तत्व क्या हैंदुर्लभ-पृथ्वी तत्व (Rare-Earth Elements - REEs) रासायनिक तत्वों का एक समूह है जिसमें लैंथेनाइड श्रृंखला के पंद्रह तत्व, स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं। ये 17 तत्व पृथ्वी की पपड़ी में पाए जाते हैं, जिन्हें आर्थिक रूप से निकालना काफी महंगा होता है। इसलिए इन्हें "दुर्लभ" कहा जाता है, न कि इनकी कम उपलब्धता के कारण। ये उच्च-तकनीकी उपकरणों, जैसे स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी, और पवन टर्बाइन के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे इनकी मांग बढ़ रही है। काचिन में मुख्य रूप से भारी दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों, विशेष रूप से डिस्प्रोसियम और टर्बियम पाया जाता है।
भारत को क्यों लगा झटकाकेआईए ने भी भारत को भारी मात्रा में दुर्लभ-पृथ्वी निर्यात की संभावनाओं का पता लगाने में रुचि दिखाई है। उसने लागत-व्यवहार्यता अध्ययनों के लिए भारी दुर्लभ-पृथ्वी की गुणवत्ता और मात्रा का आकलन करने के लिए नमूनों की खरीद भी शुरू कर दी है। हालांकि, म्यांमार के सैन्य शासन को भी इस योजना की भनक लग गई है और उसने काचिन में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में स्थित दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के केंद्रों पर भारी हमले किए हैं। इससे इस योजना को झटका लगा है। केआईए के प्रवक्ता नॉ बु ने बताया है कि म्यांमार का सैन्य शासन काचिन में एक प्रमुख दुर्लभ-पृथ्वी केंद्र, 'विशेष क्षेत्र-1' को फिर से प्राप्त करने की योजना बना रहा है।
रेल लाइन से म्यांमार को जोड़ेगा भारतभारत ने म्यांमार से इन दुर्लभ मृदा तत्वों की ढुलाई के लिए मिजोरम के सैरांग तक एक नई रेल लाइन का भी उद्घाटन किया है। इसे भारत की प्रमुख रणनीतिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक माना जा रहा है। इससे न केवल मिजोरम रेल नेटवर्क से जुड़ा है, बल्कि म्यांमार के करीब तक भारत ट्रेन पहुंचाने में सफल हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रेल लाइन भारत को म्यांमार के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों के और करीब ला सकती है।
मिजोरम वाली लाइन को 223 किमी बढ़ाने की योजनाद फेडरल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की योजना रेल लाइन को मिजोरम के लॉन्ग्टलाई जिले में म्यांमार सीमा पर स्थित एक छोटे से शहर हमवंगबुचुआ तक पहुंचाने की है। इसके लिए रेल लाइन की लंबाई 223 किलोमीटर और बढ़ाई जाएगी। यह शहर एक महत्वपूर्ण जंक्शन के रूप में काम करेगा, जो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को म्यांमार के कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना से सड़क मार्ग से जोड़ेगा। यह पूर्वोत्तर भारत को म्यांमार के रखाइन राज्य में स्थित सित्तवे बंदरगाह तक रणनीतिक पहुंच भी प्रदान करेगा।
म्यांमार में हिंसा के कारण परियोजना पर ग्रहणपूरा होने के बाद, इस परियोजना से म्यांमार के साथ भारत के व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। हालांकि, म्यांमार के उत्तर-पूर्व में स्थित काचिन की खदानों से दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों की महत्वपूर्ण मात्रा के परिवहन पर इसका प्रभाव सीमित रह सकता है, क्योंकि म्यांमार के भीतर भारत की सीमा तक उन खनिज पदार्थों के परिवहन के लिए जरूरी सड़क या रेल संपर्क का अभाव है। भारत ने म्यांमार के सैन्य शासन के साथ भी इस परियोजना पर काम करने को लेकर संपर्क किया है।
भारत ने म्यांमार के विद्रोही समूह से की थी बातचीत!रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय खान मंत्रालय ने इस साल जून में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड और हैदराबाद की मिडवेस्ट एडवांस्ड मटेरियल प्राइवेट लिमिटेड को काचिन में खनन स्थलों से दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों के नमूनों की सोर्सिंग और परिवहन की व्यवहार्यता का आकलन करने का काम सौंपा था। यह इलाका वर्तमान में म्यांमार के विद्रोही समूह काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) के नियंत्रण में है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने ऑनलाइन मोड में केआईए के साथ ऑनलाइन चर्चा भी की है।
दुर्लभ-पृथ्वी तत्व क्या हैंदुर्लभ-पृथ्वी तत्व (Rare-Earth Elements - REEs) रासायनिक तत्वों का एक समूह है जिसमें लैंथेनाइड श्रृंखला के पंद्रह तत्व, स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं। ये 17 तत्व पृथ्वी की पपड़ी में पाए जाते हैं, जिन्हें आर्थिक रूप से निकालना काफी महंगा होता है। इसलिए इन्हें "दुर्लभ" कहा जाता है, न कि इनकी कम उपलब्धता के कारण। ये उच्च-तकनीकी उपकरणों, जैसे स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी, और पवन टर्बाइन के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे इनकी मांग बढ़ रही है। काचिन में मुख्य रूप से भारी दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों, विशेष रूप से डिस्प्रोसियम और टर्बियम पाया जाता है।
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