नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर और डी वाई चंद्रचूड़ शुक्रवार को ‘एक साथ चुनाव’ विधेयक की समीक्षा कर रही संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए। सूत्रों ने बताया कि दोनों न्यायविदों का मानना है कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की अवधारणा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करती है, लेकिन उन्होंने प्रस्तावित कानून में चुनाव आयोग को दी गई शक्ति की सीमा पर सवाल उठाया है। साथ ही देश में लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कुछ सुझाव भी दिए हैं।
समिति के समक्ष उपस्थित हो चुके ये पूर्व सीजेआईभारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद पी पी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति विधेयक पर अपनी सिफारिशें तैयार करने के लिए न्यायविदों और कानूनी विशेषज्ञों से विचार विमर्श कर रही है। भारत के दो अन्य पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और रंजन गोगोई भी समिति के समक्ष उपस्थित हो चुके हैं। हालांकि दोनों ने एक साथ चुनावों की संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन उन्होंने विधेयक के कुछ पहलुओं पर सवाल उठाए और सुझाव दिए थे।
सरकारी खर्चों में आएगी कमी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति का कार्यकाल संसद के मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक बढ़ा दिया गया है। विधेयक को पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पेश किये जाने के बाद समिति को भेजा गया था। सरकार का कहना है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से विकास को गति मिलेगी और सरकारी व्यय में कमी आएगी क्योंकि बार-बार चुनाव होने से विकास कार्य बाधित होते हैं। विपक्षी दलों ने इस विचार को ‘असंवैधानिक’ और संघवाद के विरुद्ध बताया है।
समिति के समक्ष उपस्थित हो चुके ये पूर्व सीजेआईभारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद पी पी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति विधेयक पर अपनी सिफारिशें तैयार करने के लिए न्यायविदों और कानूनी विशेषज्ञों से विचार विमर्श कर रही है। भारत के दो अन्य पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और रंजन गोगोई भी समिति के समक्ष उपस्थित हो चुके हैं। हालांकि दोनों ने एक साथ चुनावों की संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन उन्होंने विधेयक के कुछ पहलुओं पर सवाल उठाए और सुझाव दिए थे।
सरकारी खर्चों में आएगी कमी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति का कार्यकाल संसद के मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक बढ़ा दिया गया है। विधेयक को पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पेश किये जाने के बाद समिति को भेजा गया था। सरकार का कहना है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से विकास को गति मिलेगी और सरकारी व्यय में कमी आएगी क्योंकि बार-बार चुनाव होने से विकास कार्य बाधित होते हैं। विपक्षी दलों ने इस विचार को ‘असंवैधानिक’ और संघवाद के विरुद्ध बताया है।
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