नई दिल्ली: भारतीय शेयर बाजार के नियामक सेबी (SEBI) ने अडानी ग्रुप के खिलाफ हिंडनबर्ग मामले में लगे आरोपों की जांच की। सेबी को जांच में कोई ठोस सबूत नहीं मिला। इसलिए, सेबी ने कहा कि अडानी ग्रुप पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा। सेबी ने अडानी पोर्ट्स, अडानी पावर, गौतम अडानी और राजेश अडानी के खिलाफ चल रही जांच को भी बंद कर दिया है। इसका मतलब है कि अब इन कंपनियों और व्यक्तियों पर इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं होगी।
सेबी ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि अडानी ग्रुप ने जानबूझकर कुछ लेन-देन को छुपाया था। सेबी ने कहा कि नियमों में बदलाव के बाद ही यह नियम बना था कि अप्रत्यक्ष लेन-देन को भी बताना होगा। यह नियम साल 2021 में बना था। सेबी ने कहा कि इस नियम को पहले से लागू करना कानूनी रूप से सही नहीं होगा। सेबी द्वारा इस मामले को बंद करने से अडानी ग्रुप को राहत मिल सकती है। हालांकि, अभी भी कंपनी की पूरी तरह से जांच खत्म नहीं हुई है। कुछ अन्य मामले जैसे रिश्वतखोरी और विदेशी निवेश अभी भी जांच के दायरे में हैं।
क्या है मामला?जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अकाउंटिंग में गड़बड़ी की है, शेयरों की कीमतों में हेरफेर किया है और शेल कंपनियों के जरिए लेन-देन को छुपाया है। इस रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयरों में भारी गिरावट आई थी। कंपनी को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को जांच करने का आदेश दिया था। एक आरोप यह भी था कि अडानी ग्रुप ने कुछ कंपनियों जैसे माइलस्टोन और रेहवार के जरिए फंड को इधर-उधर किया। ऐसा करके वे लेन-देन को छुपाना चाहते थे।
सेबी ने कहा- कोई धोखाधड़ी नहींसेबी की जांच में पता चला कि अडानी पोर्ट्स ने माइलस्टोन और रेहवार को लोन दिया था। फिर माइलस्टोन और रेहवार ने अडानी पावर और अडानी एंटरप्राइजेज को लोन दिया। बाद में यह पैसा ब्याज के साथ चुका दिया गया। सेबी ने कहा कि इस तरह के लेन-देन चिंता पैदा कर सकते हैं, लेकिन इन्हें 'रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन' नहीं कहा जा सकता। क्योंकि साल 2021 से पहले के नियमों में इसकी परिभाषा अलग थी।
यहां नहीं मिला सबूतसेबी ने यह भी कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि फंड को गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया या शेयरधारकों को कोई नुकसान हुआ। सेबी ने निष्कर्ष निकाला कि नोटिस जारी करने वालों के खिलाफ लगाए गए आरोप सही नहीं पाए गए। सेबी ने यह भी कहा कि रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन अपने आप में गैरकानूनी नहीं हैं, बशर्ते उन्हें ठीक से बताया जाए और मंजूरी दी जाए।
अडानी ग्रुप के लिए अच्छी खबरयह आदेश अडानी ग्रुप के लिए एक बड़ी राहत है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद से कंपनी पर कई सवाल उठ रहे थे। लोग कंपनी के कामकाज, पारदर्शिता और फंडिंग को लेकर सवाल उठा रहे थे। अडानी ग्रुप ने शुरुआत से ही आरोपों को गलत बताया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेबी जांच कर रही थी, जिससे यह मामला निवेशकों के बीच चर्चा में बना हुआ था।
सेबी ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि अडानी ग्रुप ने जानबूझकर कुछ लेन-देन को छुपाया था। सेबी ने कहा कि नियमों में बदलाव के बाद ही यह नियम बना था कि अप्रत्यक्ष लेन-देन को भी बताना होगा। यह नियम साल 2021 में बना था। सेबी ने कहा कि इस नियम को पहले से लागू करना कानूनी रूप से सही नहीं होगा। सेबी द्वारा इस मामले को बंद करने से अडानी ग्रुप को राहत मिल सकती है। हालांकि, अभी भी कंपनी की पूरी तरह से जांच खत्म नहीं हुई है। कुछ अन्य मामले जैसे रिश्वतखोरी और विदेशी निवेश अभी भी जांच के दायरे में हैं।
क्या है मामला?जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अकाउंटिंग में गड़बड़ी की है, शेयरों की कीमतों में हेरफेर किया है और शेल कंपनियों के जरिए लेन-देन को छुपाया है। इस रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयरों में भारी गिरावट आई थी। कंपनी को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को जांच करने का आदेश दिया था। एक आरोप यह भी था कि अडानी ग्रुप ने कुछ कंपनियों जैसे माइलस्टोन और रेहवार के जरिए फंड को इधर-उधर किया। ऐसा करके वे लेन-देन को छुपाना चाहते थे।
सेबी ने कहा- कोई धोखाधड़ी नहींसेबी की जांच में पता चला कि अडानी पोर्ट्स ने माइलस्टोन और रेहवार को लोन दिया था। फिर माइलस्टोन और रेहवार ने अडानी पावर और अडानी एंटरप्राइजेज को लोन दिया। बाद में यह पैसा ब्याज के साथ चुका दिया गया। सेबी ने कहा कि इस तरह के लेन-देन चिंता पैदा कर सकते हैं, लेकिन इन्हें 'रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन' नहीं कहा जा सकता। क्योंकि साल 2021 से पहले के नियमों में इसकी परिभाषा अलग थी।
यहां नहीं मिला सबूतसेबी ने यह भी कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि फंड को गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया या शेयरधारकों को कोई नुकसान हुआ। सेबी ने निष्कर्ष निकाला कि नोटिस जारी करने वालों के खिलाफ लगाए गए आरोप सही नहीं पाए गए। सेबी ने यह भी कहा कि रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन अपने आप में गैरकानूनी नहीं हैं, बशर्ते उन्हें ठीक से बताया जाए और मंजूरी दी जाए।
अडानी ग्रुप के लिए अच्छी खबरयह आदेश अडानी ग्रुप के लिए एक बड़ी राहत है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद से कंपनी पर कई सवाल उठ रहे थे। लोग कंपनी के कामकाज, पारदर्शिता और फंडिंग को लेकर सवाल उठा रहे थे। अडानी ग्रुप ने शुरुआत से ही आरोपों को गलत बताया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेबी जांच कर रही थी, जिससे यह मामला निवेशकों के बीच चर्चा में बना हुआ था।
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