नई दिल्ली स्थित विजन आई क्लीनिक और लाजपत नगर स्थित आई 7 हॉस्पिटल के सीनियर कैटेरेक्ट एंड रेटिना सर्जन डॉक्टर पवन गुप्ता ने बताया कि हाई ब्लड शुगर से आंख में मौजूद रेटिना खराब हो सकता है। यह आंख के पीछे का हिस्सा होता है, जहां इमेज बनती है और ऑप्टिक नर्व के द्वारा इसका संकेत दिमाग तक पहुंचता है।
डायबिटीज से रेटिना की नसों को नुकसान
डॉक्टर पवन बताते हैं कि डायबिटीज से रेटिना के अंदर मौजूद महीन नसों को नुकसान पहुंचता है। इसकी शुरुआत नसों के बाहर फूलने से होती है, जिसे microaneous कहा जाता है। बीमारी बढ़ने पर इन फुलावों से फ्लूइड और कोलेस्ट्रॉल लीक होने लगता है।
कोलेस्ट्रॉल जमने के लक्षण

यह फ्लूइड तरल पदार्थ या कोलेस्ट्रॉल हो सकता है, जो लीक होने के बाद रेटिना के सेंट्रल एरिया में जम जाता है, इसे मैक्यूलर एडीमा कहते हैं। डॉक्टर के मुताबिक मैक्यूलर एडीमा की वजह से मरीज को देखने में परेशानी, आंखों के फ्लोटर्स (काले धब्बे) आना और अन्य आंखों की दिक्कतें हो सकती हैं।
नस फटने से ब्लीडिंग का खतरा
जब फ्लूइड से आंखों की नस ब्लॉक हो जाती है और ब्लड सप्लाई बाधित होती है तो रेटिना को नुकसान पहुंचने लगता है। इससे निपटने के लिए शरीर आंखों में नए ब्लड वेसल्स बनाने लगता है, जिसे प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी कहते हैं। लेकिन यह नसें बहुत नाजुक होती हैं और इनके फटने और ब्लीडिंग का खतरा हो सकता है।
रेटिना पर ट्रैक्शन बढ़ना
डॉक्टर का कहना है कि कुछ मामलों में कमजोर नसों से रेटिना के ऊपर ट्रैक्शन (बोझ या जोर) पड़ सकता है, जिसे ट्रैक्शनल रेटिनल डिटैचमेंट कहा जाता है। इसलिए मरीज को नियमित रूप से आंखों की जांच साल में एक बार जरूर करवानी चाहिए। यह जांच सभी को करवानी चाहिए, चाहे आपको दिक्कतें हों या नहीं।
ऐसे होती है जांच
डॉक्टर ने बताया कि समस्या का पता लगाने और डायबिटिक रेटिनोपैथी ठीक करने के लिए एंजियोग्राफी, fundus fluorescein एंजियोग्राफी और ओसीटी सबसे प्रमुख जांच है। इनसे पता चलता है कि कौन सी नस को नुकसान पहुंच रहा है और लीकेज कहां से हो रही है या शरीर नई ब्लड वेसल्स बना रहा है या नहीं। ओसीटी की मदद से पता लगाते हैं कि मैक्यूलर एरिया में तरल जमा तो नहीं हो रहा, जिससे रेटिना पर ट्रैक्शन बढ़ रहा है। इससे मरीज की स्थिति की गंभीरता और बीमारी की स्टेज का पता चलता है।
आंखों के अंदर लगता है इंजेक्शन

इलाज के लिए रेगुलर इंटरवल पर intrabitreal Injection लगाया जाता है। जिसमें से एक anti-VEGF और दूसरा स्टेरॉइड इंप्लांट इंजेक्शन होता है। एंटी-वीईजीएफ (वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन से वीईजीएफ हॉर्मोन ब्ल़क होता है और मैक्यूलर एडीमा को खत्म करने और नई नसों की बनावट को हल करने में मदद मिलती है। स्टेरॉइड इंप्लांट इंजेक्शन स्टिक या पेलेट रूप में होता है, जिसे आंखों के अंदर लगाकर मैक्यूलर एडीमा रोका जाता है।
लेजर और सर्जरी से इलाज
अगर मैक्यूला में कोलेस्ट्रॉल या फ्लूइड का ज्यादा जमाव हो तो लेजर ट्रीटमेंट किया जाता है। लेकिन अगर इसकी वजह से नस फटने या ब्लीडिंग की समस्या है तो parsplenovitrectomy नाम की सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी में तीन एंडोस्कोपिक पोर्ट से ट्रैक्शन, vitreous gel से ब्लीडिंग खत्म की जाती है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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