नई दिल्ली:भारत के पड़ोस में खुद को पॉवरफुल मानने वाले चीन में कुछ तो गड़बड़ चल रही है। शी जिनपिंग के 21 मई से 5 जून तक गायब रहने और अब 6-7 जुलाई को ब्रिक्स की होने वाली बैठक से दूर रहने को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। मगर, ऐसा दावा किया जा रहा है कि जिनपिंग को अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के जनरलों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इन सबके पीछे एक छोटा सा देश है ताइवान, जो चीन की आंखों में बरसों से गड़ रहा है। जिनपिंग के बारे में भी माना जाता है कि उन्होंने अपनी आर्मी को 2027 तक ताइवान पर हमला करने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया है। इससे एक विनाशकारी सैन्य संघर्ष का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में भारत और अमेरिका के लिए यह खतरे की घंटी है, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति के लिए काम कर रहे हैं। यह भी समझते हैं कि क्या जिनपिंग के 'गायब' होने के पीछे क्या उनके ही आर्मी के जनरल्स हैं। आइए समझते हैं पूरी बात।
जिनपिंग ने अपने आर्मी जनरल्स पर भांजी तलवार
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक ओपिनियन के अनुसार, शी जिनपिंग बरसों से अपनी सेना के टॉप पर बैठी लीडरशिप पर तलवार चलाने में लगे हुए थे। इससे यह संदेह पैदा होता है कि क्या वह अपने जनरलों पर सफलतापूर्वक युद्ध लड़ने के लिए भरोसा कर सकते हैं या नहीं। पिछले दो सालों में, दो रक्षा मंत्रियों और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कई वरिष्ठ अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया है। इनमें रॉकेट फोर्स के शीर्ष नेता भी शामिल हैं, जो चीन के परमाणु हथियारों को नियंत्रित करती है। अब यही जनरल्स में जिनपिंग को लेकर असंतोष पनप रहा है और वे जिनपिंग के खिलाफ मौन बगावत कर रहे हैं।
ताइवान पर अटैक का प्लान बनाने वाले को हटाया
जिनपिंग की अगुवाई में चीन में टॉप पदों से हटाने का सिलसिला जारी है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, बीते मार्च में जनरल हे वेइडोंग को भी हटा दिया गया था। वह देश के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी थे। वह सीधे शी जिनपिंग को रिपोर्ट करते थे और ताइवान पर संभावित आक्रमण का प्लान बनाने में शामिल थे। इस घटना के बाद से ही आर्मी जनरलों में विरोध के सुर उठने लगे थे। यह निश्चित रूप से कहना असंभव है कि इस तरह की बर्खास्तगी भ्रष्टाचार से संबंधित है या नहीं। पीएलए में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है या फिर वैचारिक मतभेदों या अन्य कारणों से संबंधित है। हालांकि, इस उथल-पुथल से शी जिनपिंग के सैन्य कमांडरों की क्षमता और विश्वसनीयता के बारे में गंभीर सवाल उठते हैं। इससे पहले भी जिनपिंग के संकेत पर चीन के पूर्व विदेश मंत्री किन गांग और पूर्व रक्षा मंत्री ली शांगफू को उनके पद से हटा दिया गया था।
ताइवान जीतना जिनपिंग का बड़ा सपना
कभी पुरानी हो चुकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अब दुनिया की सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है। यह हवाई, नौसेना और मिसाइल शक्ति में अमेरिका को टक्कर देती है। चीन की सेना सालों से ताइवान पर आक्रमण या नाकाबंदी का अभ्यास कर रही है। इसमें अप्रैल की शुरुआत में किए गए अभ्यास भी शामिल हैं और ताइवान जलडमरूमध्य में हजारों सैनिकों को ले जाने की चुनौतियों का समाधान कर रही है। ताइवान जीतना जिनपिंग का बड़ा सपना है। मगर, अब जिनपिंग के विरोधी जनरलल्स ही उनके मंसूबे को फेल करने में लगे हुए हैं। अब जिनपिंग के विरोधी सुर उठने लगे हैं।
रूस-अमेरिका के मुकाबले चीन यहां खा गया मात
लेख के अनुसार, चीन ने 1979 के बाद से कोई युद्ध नहीं लड़ा है। अमेरिकी और रूसी जनरलों के मुकाबले आज की पीढ़ी के चीनी अधिकारियों के पास युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। खुद शी जिनपिंग इस पर अफसोस जता चुके हैं। इसके अलावा, चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी भी अब जिनपिंग के मुकाबले कई बड़े नेताओं को आगे बढ़ा रही है। इनमें चीन के एक टेक्नोक्रेट वांग यांग और चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग हैं, जो ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन की तरफ से हिस्सा लेंगे।
जिनपिंग का अपनी सेना पर कंट्रोल नहीं रहा
एनवाईटी के अनुसार, शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का अपनी सेना पर ठोस नियंत्रण नहीं है। अमेरिकी सेना के अफसर जहां संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। उन्हें गैर राजनीतिक माना जाता है। वहीं, पीएलए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेना है। इसके अधिकारी पार्टी के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। वे पार्टी के सदस्य होते हैं। शी जिनपिंग से पार्टी के प्रमुख और उसके शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में आदेश लेते हैं।
क्या पीएलए पर फुल कंट्रोल नहीं कर पाए जिनपिंग
जैसे-जैसे चीनी सैन्य खर्च सालों से बढ़ा है, वैसे-वैसे भ्रष्टाचार के अवसर भी बढ़े हैं। भ्रष्ट नेताओं पर चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने आंखें मूंद ली हैं। 2012 में शी जिनपिंग ने सत्ता में आने के बाद पार्टी में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया। इससे भ्रष्ट या संभावित रूप से अविश्वासी वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को बाहर निकाला गया। उन्होंने सशस्त्र बलों का सबसे बड़ा पुनर्गठन भी किया। टॉप अफसरों की सर्जरी का मतलब है कि जिनपिंग अभी भी पीएलए पर पूरा कंट्रोल नहीं कर पाए हैं।
तो क्या ताइवान बन सकता है चीन के लिए नासूर
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर विनाशकारी आक्रमण ने दुनिया को दिखाया कि कोई भी सैन्य ताकत अकेले एक छोटे दुश्मन पर जीत सुनिश्चित नहीं कर सकती है। इसी तरह ताइवान के साथ युद्ध जीतने या हारने से चीन की अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी वृद्धि और भारी अमेरिकी व्यापार शुल्क का सामना कर रही है। ऐसे में एक सैन्य विफलता शी जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ को खतरे में डाल सकती है।
भारत-अमेरिका के लिए टेंशन, जानिए खतरा
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के मुताबिक, चीन में जो कुछ भी हो रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए भी बड़ी चिंता की बात है। क्योंकि चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करना चाहता है, जो भारत और अमेरिका के लिए ठीक नहीं है। जिनपिंग अपना रुतबा फिर से वापस लाने के लिए ताइवान पर हमला कर सकते हैं या फिर प्रशांत क्षेत्र में एक युद्ध को भड़का सकते हैं। ऐसे में भारत-अमेरिका दोनों ही देश चीन में चल रहे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। चीन दक्षिण चीन सागर पर पहले से दबदबा कायम किए हुए है।
जिनपिंग ने अपने आर्मी जनरल्स पर भांजी तलवार
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक ओपिनियन के अनुसार, शी जिनपिंग बरसों से अपनी सेना के टॉप पर बैठी लीडरशिप पर तलवार चलाने में लगे हुए थे। इससे यह संदेह पैदा होता है कि क्या वह अपने जनरलों पर सफलतापूर्वक युद्ध लड़ने के लिए भरोसा कर सकते हैं या नहीं। पिछले दो सालों में, दो रक्षा मंत्रियों और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कई वरिष्ठ अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया है। इनमें रॉकेट फोर्स के शीर्ष नेता भी शामिल हैं, जो चीन के परमाणु हथियारों को नियंत्रित करती है। अब यही जनरल्स में जिनपिंग को लेकर असंतोष पनप रहा है और वे जिनपिंग के खिलाफ मौन बगावत कर रहे हैं।
ताइवान पर अटैक का प्लान बनाने वाले को हटाया
जिनपिंग की अगुवाई में चीन में टॉप पदों से हटाने का सिलसिला जारी है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, बीते मार्च में जनरल हे वेइडोंग को भी हटा दिया गया था। वह देश के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी थे। वह सीधे शी जिनपिंग को रिपोर्ट करते थे और ताइवान पर संभावित आक्रमण का प्लान बनाने में शामिल थे। इस घटना के बाद से ही आर्मी जनरलों में विरोध के सुर उठने लगे थे। यह निश्चित रूप से कहना असंभव है कि इस तरह की बर्खास्तगी भ्रष्टाचार से संबंधित है या नहीं। पीएलए में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है या फिर वैचारिक मतभेदों या अन्य कारणों से संबंधित है। हालांकि, इस उथल-पुथल से शी जिनपिंग के सैन्य कमांडरों की क्षमता और विश्वसनीयता के बारे में गंभीर सवाल उठते हैं। इससे पहले भी जिनपिंग के संकेत पर चीन के पूर्व विदेश मंत्री किन गांग और पूर्व रक्षा मंत्री ली शांगफू को उनके पद से हटा दिया गया था।
ताइवान जीतना जिनपिंग का बड़ा सपना
कभी पुरानी हो चुकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अब दुनिया की सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है। यह हवाई, नौसेना और मिसाइल शक्ति में अमेरिका को टक्कर देती है। चीन की सेना सालों से ताइवान पर आक्रमण या नाकाबंदी का अभ्यास कर रही है। इसमें अप्रैल की शुरुआत में किए गए अभ्यास भी शामिल हैं और ताइवान जलडमरूमध्य में हजारों सैनिकों को ले जाने की चुनौतियों का समाधान कर रही है। ताइवान जीतना जिनपिंग का बड़ा सपना है। मगर, अब जिनपिंग के विरोधी जनरलल्स ही उनके मंसूबे को फेल करने में लगे हुए हैं। अब जिनपिंग के विरोधी सुर उठने लगे हैं।
रूस-अमेरिका के मुकाबले चीन यहां खा गया मात
लेख के अनुसार, चीन ने 1979 के बाद से कोई युद्ध नहीं लड़ा है। अमेरिकी और रूसी जनरलों के मुकाबले आज की पीढ़ी के चीनी अधिकारियों के पास युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। खुद शी जिनपिंग इस पर अफसोस जता चुके हैं। इसके अलावा, चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी भी अब जिनपिंग के मुकाबले कई बड़े नेताओं को आगे बढ़ा रही है। इनमें चीन के एक टेक्नोक्रेट वांग यांग और चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग हैं, जो ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन की तरफ से हिस्सा लेंगे।
जिनपिंग का अपनी सेना पर कंट्रोल नहीं रहा
एनवाईटी के अनुसार, शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का अपनी सेना पर ठोस नियंत्रण नहीं है। अमेरिकी सेना के अफसर जहां संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। उन्हें गैर राजनीतिक माना जाता है। वहीं, पीएलए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेना है। इसके अधिकारी पार्टी के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। वे पार्टी के सदस्य होते हैं। शी जिनपिंग से पार्टी के प्रमुख और उसके शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में आदेश लेते हैं।
क्या पीएलए पर फुल कंट्रोल नहीं कर पाए जिनपिंग
जैसे-जैसे चीनी सैन्य खर्च सालों से बढ़ा है, वैसे-वैसे भ्रष्टाचार के अवसर भी बढ़े हैं। भ्रष्ट नेताओं पर चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने आंखें मूंद ली हैं। 2012 में शी जिनपिंग ने सत्ता में आने के बाद पार्टी में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया। इससे भ्रष्ट या संभावित रूप से अविश्वासी वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को बाहर निकाला गया। उन्होंने सशस्त्र बलों का सबसे बड़ा पुनर्गठन भी किया। टॉप अफसरों की सर्जरी का मतलब है कि जिनपिंग अभी भी पीएलए पर पूरा कंट्रोल नहीं कर पाए हैं।
तो क्या ताइवान बन सकता है चीन के लिए नासूर
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर विनाशकारी आक्रमण ने दुनिया को दिखाया कि कोई भी सैन्य ताकत अकेले एक छोटे दुश्मन पर जीत सुनिश्चित नहीं कर सकती है। इसी तरह ताइवान के साथ युद्ध जीतने या हारने से चीन की अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी वृद्धि और भारी अमेरिकी व्यापार शुल्क का सामना कर रही है। ऐसे में एक सैन्य विफलता शी जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ को खतरे में डाल सकती है।
भारत-अमेरिका के लिए टेंशन, जानिए खतरा
डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के मुताबिक, चीन में जो कुछ भी हो रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए भी बड़ी चिंता की बात है। क्योंकि चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करना चाहता है, जो भारत और अमेरिका के लिए ठीक नहीं है। जिनपिंग अपना रुतबा फिर से वापस लाने के लिए ताइवान पर हमला कर सकते हैं या फिर प्रशांत क्षेत्र में एक युद्ध को भड़का सकते हैं। ऐसे में भारत-अमेरिका दोनों ही देश चीन में चल रहे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। चीन दक्षिण चीन सागर पर पहले से दबदबा कायम किए हुए है।
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