पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को 10 हजार रुपये देने पर चुनाव आयोग की चुप्पी ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। यह वही चुनाव आयोग है, जिसने तमिलनाडु में इसी तरह की परिस्थितियों में दो कल्याणकारी योजनाओं पर रोक लगा दी थी।बता दें, चुनाव आयोग ने 2004 में AIADMK की किसानों को नकद सहायता और 2006 में DMK की मुफ्त टीवी योजना पर रोक लगी दी थी।
बिहार में जारी रही 10,000 वाली योजना
बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव की घोषणा (6 अक्टूबर) से दस दिन पहले, 26 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75 लाख महिलाओं को कवर करने के लिए यह बिहार में 10 हजार वाली योजना शुरू की थी। आरजेडी और कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि इस योजना का चुनाव के दौरान लागू रहना आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन आयोग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
तमिलनाडु में दो बार रोक चुका है चुनाव आयोग
पिछले दो दशकों में तमिलनाडु में दो बार चुनाव आयोग ने कल्याण योजनाओं पर सख्ती दिखाई थी।
किसानों के लिए मनीऑर्डर योजना (2004): मार्च 2003 में जयललिता की एआईएडीएमके सरकार ने किसानों के लिए फ्री बिजली योजना को खत्म कर नकद सहायता देने की घोषणा की थी। छोटे किसानों को साल में दो बार 500 से 625 रुपये देने का प्रावधान था। मगर 22 मार्च 2004 को तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी मृत्युंजय सारंगी ने जिला कलेक्टरों को आदेश दिया कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक पैसे न भेजे जाएं।
डीएमके की फ्री कलर टीवी योजना (2006–2011)सितंबर 2006 में करुणानिधि सरकार ने फ्री कलर टीवी वितरण योजना शुरू की थी। मार्च 2011 में जैसे ही चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, आयोग ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिया कि टीवी वितरण तुरंत रोक दिया जाए। हालांकि तब तक 1.62 करोड़ टीवी सेट बांटे जा चुके थे और करीब 9 लाख और बाकी थे।
आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल
बिहार में चुनाव के दौरान जारी महिलाओं के लिए जारी आर्थिक सहायता के लिए 10 हजार रुपये पर कोई रोक नहीं लगाना यह दिखाता है कि आयोग की नीति में समानता नहीं दिख रही है। राजनीतिक दलों का कहना है कि अगर तमिलनाडु में योजनाएं रोकी जा सकती हैं, तो बिहार में भी वही मानक लागू होने चाहिए थे।
बिहार में जारी रही 10,000 वाली योजना
बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव की घोषणा (6 अक्टूबर) से दस दिन पहले, 26 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75 लाख महिलाओं को कवर करने के लिए यह बिहार में 10 हजार वाली योजना शुरू की थी। आरजेडी और कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि इस योजना का चुनाव के दौरान लागू रहना आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन आयोग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
तमिलनाडु में दो बार रोक चुका है चुनाव आयोग
पिछले दो दशकों में तमिलनाडु में दो बार चुनाव आयोग ने कल्याण योजनाओं पर सख्ती दिखाई थी।
किसानों के लिए मनीऑर्डर योजना (2004): मार्च 2003 में जयललिता की एआईएडीएमके सरकार ने किसानों के लिए फ्री बिजली योजना को खत्म कर नकद सहायता देने की घोषणा की थी। छोटे किसानों को साल में दो बार 500 से 625 रुपये देने का प्रावधान था। मगर 22 मार्च 2004 को तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी मृत्युंजय सारंगी ने जिला कलेक्टरों को आदेश दिया कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक पैसे न भेजे जाएं।
डीएमके की फ्री कलर टीवी योजना (2006–2011)सितंबर 2006 में करुणानिधि सरकार ने फ्री कलर टीवी वितरण योजना शुरू की थी। मार्च 2011 में जैसे ही चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, आयोग ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिया कि टीवी वितरण तुरंत रोक दिया जाए। हालांकि तब तक 1.62 करोड़ टीवी सेट बांटे जा चुके थे और करीब 9 लाख और बाकी थे।
आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल
बिहार में चुनाव के दौरान जारी महिलाओं के लिए जारी आर्थिक सहायता के लिए 10 हजार रुपये पर कोई रोक नहीं लगाना यह दिखाता है कि आयोग की नीति में समानता नहीं दिख रही है। राजनीतिक दलों का कहना है कि अगर तमिलनाडु में योजनाएं रोकी जा सकती हैं, तो बिहार में भी वही मानक लागू होने चाहिए थे।
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