नई दिल्ली: अंडमान सागर के बैरन द्वीप पर स्थित भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी हफ्ते में दो बार फटने की घटना ने पूरी दुनिया के भूवैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है। राहत की बात है कि बैरन द्वीप पर आबादी नहीं है। इस महीने 13 और 20 सितंबर को दो बार यह ज्वालामुखी अचानक सुलग उठा और उससे धधकता हुआ लावा निकलना शुरू हो गया। दक्षिण एशिया के वैज्ञानिकों को प्रकृति की इस घटना पर नजर लगी हुई है। इस बार लगभग दो दशक के बाद यह ज्वालामुखी जलता हुआ नजर आया है।
2004 के भयानक भूकंप में खिसका था प्लेट
ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 सितंबर को ज्वालामुखी में जो दूसरा विस्फोट हुआ, उसके पीछे दो दिन पहले इलाके में 4.2 तीव्रता वाले भूकंप को कारण बताया जा रहा है। दरअसल, बैरन द्वीप भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से उस भूगर्भीय फॉल्ट लाइन पर है, जो 2004 के विध्वंसकारी भूकंप में खिसक गया था, जिसकी वजह से बहुत ही भयावह सुनामी आई थी। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के डायरेक्टर ओपी मिश्रा के मुताबिक यह विस्फोट ज्वालामुखी के मैग्मा चैंबर में 'कंपन तीव्रता'(shaking intensity) की वजह से हुआ है। बैरन द्वीप करीब 3.2 किलोमीटर चौड़ा और समुद्र तल से करीब 2 किलोमीटर तक ऊंचा है। वैसे समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचीई 300 मीटर है।
सुंडा प्लेट के अंदर घुस रहा है भारतीय प्लेट
दरअसल, पश्चिमी अंडमान फॉल्ट में स्थित यह वो क्षेत्र है,जहां भारतीय प्लेट लगातार सुंडा प्लेट के अंदर घुस रहा है, जिसकी वजह से यहां मध्यम से मजबूत भूंकपीय घटनाएं अक्सर देखने को मिलती हैं। ये भूकंप मैग्मा चैंबर में हलचल मचा देते हैं, जो सतह से 18 से 20 किलोमीटर अंदर हैं और इसकी वजह से दरारों और छिद्रों के माध्यम से पिघला हुआ लावा अचानक बाहर निकलना शुरू हो जाता है, जो मौजूदा केस में हुआ है।
2005 के बाद सुलगी है बैरन आइलैंड
बैरन आइलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाएं नई नहीं हैं। लेकिन, अबकी बार दो दशक बाद यह उन वजहों से फटा है, जिसकी वजह से 2004 के दिसंबर में भयंकर सुनामी आई थी और भारत समेत दक्षिण एशिया में हजारों लोगों की जान चली गई थी। बैरन आइलैंड 1991, 2004 और 2005 में भी ज्वालामुखी सुलग चुके हैं। हर ज्वालामुखी का रिश्ता भूकंपीय गतिवधियों से जुड़ा है, जिनका सीधा संबंध क्षेत्र में भूकंप और ज्वालामुखी फटने से है।
क्यों होते हैं ज्वालामुखी विस्फोट
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्वालामुखी फटने का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि मैग्मा इसके अंदर लगातार घूमता रहता है। जैसे ही भूकंपीय गतिविधियां तेज होती हैं, ज्वालामुखी के अंदर दबा हुआ तापमान और गैस तेजी से दरारों और छेद से बाहर निकलना शुरू हो जाता है, जिसके साथ लावा और राख आने लगते हैं। यहां बगल में ही नार्कोडम ज्वालामुखी भी मौजूद है, जो फिलहाल निष्क्रिय पड़ा हुआ है। हालांकि, इस बार भी दोनों ही ज्वालामुखी विस्फोट आमतौर पर हल्के थे, लेकिन एक्सपर्ट की चेतावनी है कि जिस तरह से अंडमान और निकोबार की भूवैज्ञानिक संरचना है, यह भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट के लिए हमेशा बहुत ही ज्यादा संवेदनशील बना हुआ है।
2004 के भयानक भूकंप में खिसका था प्लेट
ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 सितंबर को ज्वालामुखी में जो दूसरा विस्फोट हुआ, उसके पीछे दो दिन पहले इलाके में 4.2 तीव्रता वाले भूकंप को कारण बताया जा रहा है। दरअसल, बैरन द्वीप भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से उस भूगर्भीय फॉल्ट लाइन पर है, जो 2004 के विध्वंसकारी भूकंप में खिसक गया था, जिसकी वजह से बहुत ही भयावह सुनामी आई थी। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के डायरेक्टर ओपी मिश्रा के मुताबिक यह विस्फोट ज्वालामुखी के मैग्मा चैंबर में 'कंपन तीव्रता'(shaking intensity) की वजह से हुआ है। बैरन द्वीप करीब 3.2 किलोमीटर चौड़ा और समुद्र तल से करीब 2 किलोमीटर तक ऊंचा है। वैसे समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचीई 300 मीटर है।
सुंडा प्लेट के अंदर घुस रहा है भारतीय प्लेट
दरअसल, पश्चिमी अंडमान फॉल्ट में स्थित यह वो क्षेत्र है,जहां भारतीय प्लेट लगातार सुंडा प्लेट के अंदर घुस रहा है, जिसकी वजह से यहां मध्यम से मजबूत भूंकपीय घटनाएं अक्सर देखने को मिलती हैं। ये भूकंप मैग्मा चैंबर में हलचल मचा देते हैं, जो सतह से 18 से 20 किलोमीटर अंदर हैं और इसकी वजह से दरारों और छिद्रों के माध्यम से पिघला हुआ लावा अचानक बाहर निकलना शुरू हो जाता है, जो मौजूदा केस में हुआ है।
2005 के बाद सुलगी है बैरन आइलैंड
बैरन आइलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाएं नई नहीं हैं। लेकिन, अबकी बार दो दशक बाद यह उन वजहों से फटा है, जिसकी वजह से 2004 के दिसंबर में भयंकर सुनामी आई थी और भारत समेत दक्षिण एशिया में हजारों लोगों की जान चली गई थी। बैरन आइलैंड 1991, 2004 और 2005 में भी ज्वालामुखी सुलग चुके हैं। हर ज्वालामुखी का रिश्ता भूकंपीय गतिवधियों से जुड़ा है, जिनका सीधा संबंध क्षेत्र में भूकंप और ज्वालामुखी फटने से है।
India's only active volcano in "Barren Island" Andman Nicobar. pic.twitter.com/1pWUwb19gL
— Ravina (@rmishra1431986) September 24, 2025
क्यों होते हैं ज्वालामुखी विस्फोट
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्वालामुखी फटने का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि मैग्मा इसके अंदर लगातार घूमता रहता है। जैसे ही भूकंपीय गतिविधियां तेज होती हैं, ज्वालामुखी के अंदर दबा हुआ तापमान और गैस तेजी से दरारों और छेद से बाहर निकलना शुरू हो जाता है, जिसके साथ लावा और राख आने लगते हैं। यहां बगल में ही नार्कोडम ज्वालामुखी भी मौजूद है, जो फिलहाल निष्क्रिय पड़ा हुआ है। हालांकि, इस बार भी दोनों ही ज्वालामुखी विस्फोट आमतौर पर हल्के थे, लेकिन एक्सपर्ट की चेतावनी है कि जिस तरह से अंडमान और निकोबार की भूवैज्ञानिक संरचना है, यह भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट के लिए हमेशा बहुत ही ज्यादा संवेदनशील बना हुआ है।
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