हैदराबाद : 75 प्रतिशत कम दृष्टि। गरीबी और कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं। फिर भी तेलंगाना के विग्नेश गायकोटी ने हर कमी को अपनी ताकत बनाया। किसी से कभी कोई गिले-शिकवे नहीं किए। सिर्फ अपना लक्ष्य बनाया और उसे पाने के लिए कड़ी मेहनत की। आखिरकार सड़क से विग्नेश आईआईटी मद्रास तक पहुंचे। 2022 में संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मेन और एडवांस्ड क्रैक किया। उन्हें एआईआर 1274 और एडवांस्ड में ऑल इंडिया रैंक 3120 मिली। दिव्यांग श्रेणी में उनकी एआईआर रैंक 3 रही। यह वर्षों के केंद्रित प्रयास का परिणाम था।
विग्नेश की जेईई की तैयारी तेलंगाना के वारंगल में शुरू हुई। जहां वह पैदा हुए थे। स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने 11वीं कक्षा से जेईई की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने कोई कोचिंग क्लासेस नहीं कीं, बल्कि यूट्यूब वीडियो से पढ़ाई की।
कमी को कभी नहीं बनने दी कमजोरी
विग्नेश लगातार आठ घंटे पढ़ते थे। अनुशासन और समय-समय पर ब्रेक लेते हुए अपने टारगेट को सेट किया। उनके पिता रवि चावल बेचते हैं। उनकी मां रजिता एक हाउस वाइफ हैं। दोनों ने विग्नेश की कमी को उनकी कमजोरी नहीं बनने दी। हमेशा उन्हें सपोर्ट किया। विग्नेश ने बताया कि दृष्टिबाधित होने के कारण, मेरे लिए सीखना एक चुनौती बन गया। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे किसी विशेष स्कूल की बजाय एक मुख्यधारा के स्कूल में डालने का फैसला किया। इस फैसले ने मुझे जल्दी ही वास्तविक दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में मदद की। सहायक तकनीक और दृढ़ संकल्प की मदद से, मैंने आगे बढ़ना सीखा।
पहली बार घर छोड़कर आए आईआईटीहालांकि आईआईटी में सिलेक्शन के बाद विग्नेश की और कड़ी परीक्षा शुरू हुई। दृष्टिबाधित विग्नेश अपने घर और माता-पिता को छोड़कर पहली बार आईआईटी मद्रास कैंपस पहुंचे थे। लेकिन समय के साथ, उन्हें यहां एक नई लय मिल गई। इस बदलाव में मेहनत लगी। शुरुआत में मेस का खाना पसंद करना आसान नहीं था। उनके दोस्त बने। उन दोस्तों के साथ वह देर रात सैर करते थे, वे पढ़ाई में उनकी मदद करते थे। आखिरी मिनट में असाइनमेंट को लेकर जब वह घबरा जाते तो दोस्त उन्हें हर तरह से सपोर्ट करते।
गूगल में बने इंटर्न
विग्नेश ने कहा कि विकलांगता के कारण वह आउटडोर खेलों में भाग नहीं ले पाते थे। उनका ज़्यादातर समय क्लास, कोडिंग और प्रोजेक्ट वर्क में बीताता है। वह पॉडकास्ट सुनते हैं। वह अपने मासिक भत्ते का सावधानीपूर्वक बजट बनाते हैं। अनावश्यक खर्च से बचते हैं। विग्नेश अभी इंजीनियरिंग के तीसरे साल में हैं और वह गूगल में इंटर्न हो गए हैं। उनका अगला टारगेट यूपीएससी की तैयारी है।
विग्नेश की जेईई की तैयारी तेलंगाना के वारंगल में शुरू हुई। जहां वह पैदा हुए थे। स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने 11वीं कक्षा से जेईई की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने कोई कोचिंग क्लासेस नहीं कीं, बल्कि यूट्यूब वीडियो से पढ़ाई की।
कमी को कभी नहीं बनने दी कमजोरी
विग्नेश लगातार आठ घंटे पढ़ते थे। अनुशासन और समय-समय पर ब्रेक लेते हुए अपने टारगेट को सेट किया। उनके पिता रवि चावल बेचते हैं। उनकी मां रजिता एक हाउस वाइफ हैं। दोनों ने विग्नेश की कमी को उनकी कमजोरी नहीं बनने दी। हमेशा उन्हें सपोर्ट किया। विग्नेश ने बताया कि दृष्टिबाधित होने के कारण, मेरे लिए सीखना एक चुनौती बन गया। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे किसी विशेष स्कूल की बजाय एक मुख्यधारा के स्कूल में डालने का फैसला किया। इस फैसले ने मुझे जल्दी ही वास्तविक दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में मदद की। सहायक तकनीक और दृढ़ संकल्प की मदद से, मैंने आगे बढ़ना सीखा।
पहली बार घर छोड़कर आए आईआईटीहालांकि आईआईटी में सिलेक्शन के बाद विग्नेश की और कड़ी परीक्षा शुरू हुई। दृष्टिबाधित विग्नेश अपने घर और माता-पिता को छोड़कर पहली बार आईआईटी मद्रास कैंपस पहुंचे थे। लेकिन समय के साथ, उन्हें यहां एक नई लय मिल गई। इस बदलाव में मेहनत लगी। शुरुआत में मेस का खाना पसंद करना आसान नहीं था। उनके दोस्त बने। उन दोस्तों के साथ वह देर रात सैर करते थे, वे पढ़ाई में उनकी मदद करते थे। आखिरी मिनट में असाइनमेंट को लेकर जब वह घबरा जाते तो दोस्त उन्हें हर तरह से सपोर्ट करते।
गूगल में बने इंटर्न
विग्नेश ने कहा कि विकलांगता के कारण वह आउटडोर खेलों में भाग नहीं ले पाते थे। उनका ज़्यादातर समय क्लास, कोडिंग और प्रोजेक्ट वर्क में बीताता है। वह पॉडकास्ट सुनते हैं। वह अपने मासिक भत्ते का सावधानीपूर्वक बजट बनाते हैं। अनावश्यक खर्च से बचते हैं। विग्नेश अभी इंजीनियरिंग के तीसरे साल में हैं और वह गूगल में इंटर्न हो गए हैं। उनका अगला टारगेट यूपीएससी की तैयारी है।
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