मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एक 36 वर्षीय तलाकशुदा महिला की सरोगेसी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस प्रकार की अनुमति से दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं और यह सरोगेसी के व्यावसायीकरण की ओर भी ले जा सकती है। जस्टिस जी एस कुलकर्णी और जस्टिस अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने कहा कि किसी महिला के अधिकारों के साथ-साथ होने वाले बच्चे के अधिकारों पर भी विचार आवश्यक है। याचिका दायर करने वाली महिला का कहना है कि उसने चिकित्सकीय कारणों से गर्भाशय हटवा लिया है और वह दोबारा विवाह नहीं करना चाहती।सरोगेसी (नियमन) अधिनियम के अनुसार, केवल विधवा या तलाकशुदा महिला ही सरोगेसी का सहारा ले सकती है, यदि उसका कोई जीवित संतान न हो या संतान को कोई जानलेवा बीमारी हो। महिला की याचिका इसी आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उसकी पहले से दो संतानें हैं, हालांकि वे पिता की अभिरक्षा में हैं और महिला का उनसे संपर्क नहीं है। हाई कोर्ट ने नहीं दी अंतरिम राहतमहिला ने सरोगेसी बोर्ड से मेडिकल इंडिकेशन प्रमाणपत्र देने और सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने कहा कि मामला केवल एक महिला की इच्छा से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह बड़ा सामाजिक और कानूनी मुद्दा है। यदि भविष्य में अविवाहित जोड़े भी सरोगेसी की मांग करने लगें और बाद में उनका संबंध समाप्त हो जाए तो इससे जटिलताएं उत्पन्न होंगी। कोर्ट ने माना कि मामला गंभीर है और सुप्रीम कोर्ट पहले से इस विषय पर विचार कर रहा है, इसलिए याचिकाकर्ता को वहीं गुहार लगानी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कोई अंतरिम राहत न देते हुए मामले को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। महिला के वकील का तर्कमहिला के वकील, तेजेश दांडे ने जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस अद्वित सेठना की बेंच के सामने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि महिला का गर्भाशय निकाला जा चुका है। इसलिए, वह अब बच्चा पैदा नहीं कर सकती। उसके पहले विवाह से हुए दो बच्चे उसके पिता के पास हैं। दांडे ने कहा कि महिला दोबारा मां बनना चाहती है, लेकिन वह शादी नहीं करना चाहती। इसलिए, उसे सरोगेसी का रास्ता अपनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट बेंच ने क्या कहाहाई कोर्ट ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या सरोगेसी में इच्छुक महिला शब्द शामिल है। कानून में इच्छुक दंपति शब्द का इस्तेमाल किया गया है। दोनों शब्दों की परिभाषाएं अलग-अलग हैं। कोर्ट के आदेश में कहा गया है सरोगेट बच्चे के अधिकारों का भी एक मुद्दा है। जस्टिस कुलकर्णी ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा, '...आप केवल एक महिला के रूप में अपने अधिकारों के बारे में नहीं सोच सकतीं। इसका मतलब है कि आपको सरोगेट बच्चे के अधिकारों के बारे में भी सोचना होगा।दांडे ने कहा कि उनकी याचिका खारिज कर दी गई क्योंकि वह सरोगेसी एक्ट के तहत 'इच्छुक महिला' की श्रेणी में नहीं आती हैं। इस एक्ट के अनुसार, एक विधवा या तलाकशुदा महिला सरोगेसी का विकल्प तभी चुन सकती है जब उसका कोई जीवित बच्चा न हो या यदि बच्चे को कोई जानलेवा बीमारी हो। दांडे ने कहा कि महिला की स्थिति विशेष है, इसलिए हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए।
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