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जन्म से पहले कैसे तय होता है बच्चे का रंग? एक्सपर्ट ने बताई वैज्ञानिक वजह

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भारत में अक्सर बच्चे के जन्म से पहले ही उसकी त्वचा के रंग (Skin Tone) को लेकर कयास लगाए जाने लगते हैं। समाज में यह धारणा आम है कि गर्भवती महिला अगर केसर, बादाम या दूध जैसे चीजें खाए तो बच्चा गोरा पैदा होता है। लेकिन क्या वास्तव में खानपान से बच्चे का रंग तय होता है?

विशेषज्ञों की मानें तो यह एक मिथक है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बच्चे की त्वचा का रंग उसके जीन (Genes) पर आधारित होता है, न कि गर्भवती महिला की डाइट पर।

जन्म से पहले कैसे तय होता है बच्चे का रंग?

वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ, बताती हैं, “बच्चे का रंग मुख्य रूप से माता-पिता से मिलने वाले जीन और उसमें मौजूद मेलानिन (Melanin) की मात्रा पर निर्भर करता है। मेलानिन एक प्राकृतिक पिगमेंट है, जो न सिर्फ त्वचा का रंग तय करता है, बल्कि बालों और आंखों के रंग में भी भूमिका निभाता है।”

जीन का रोल:

हर इंसान को आधे जीन मां से और आधे पिता से मिलते हैं।

स्किन टोन से जुड़े जीन भी माता-पिता से बच्चे को ट्रांसफर होते हैं।

इन जीन के संयोजन से यह तय होता है कि बच्चा गोरा, सांवला या गेहुआ होगा।

मेलानिन का प्रभाव:

मेलानिन जितना अधिक होगा, त्वचा उतनी ही डार्क होगी।

कम मेलानिन से त्वचा हल्की यानी फेयर दिखाई देती है।

क्या खानपान से रंग में फर्क आता है?

कुछ पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को केसर वाला दूध, नारियल पानी, बादाम आदि गोरे बच्चे के लिए खिलाया जाता है। लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों की मानें तो ये सभी आहार स्वास्थ्य के लिए तो लाभकारी हैं, लेकिन इससे बच्चे की त्वचा का रंग तय नहीं होता।

डॉ. स्पष्ट करती हैं, “गर्भावस्था में पौष्टिक आहार बच्चे के ब्रेन डेवलपमेंट, इम्यून सिस्टम और ग्रोथ के लिए जरूरी होता है, लेकिन त्वचा के रंग में इसका कोई सीधा संबंध नहीं होता।”

समाज में फैली भ्रांतियां और उनका असर

रंग को लेकर भेदभाव आज भी कई परिवारों में देखने को मिलता है।

गर्भावस्था के दौरान महिलाएं अनावश्यक दबाव में आ जाती हैं कि कहीं बच्चा ‘गोरा’ न हुआ तो क्या होगा।

ऐसे में सही जानकारी और जागरूकता बेहद जरूरी है।

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