उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार दोहराया है कि उनके प्रशासन में भ्रष्टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' है। बार-बार ऐसा बोलकर लोगों को यकीन दिलाना चाहते हैं कि इस पर वह अमल भी करते हैं। उनके मंत्री और अफसर भी इसका उल्लेख करना नहीं भूलते। भले ही समाज में विपरीत छवि हो, भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन की 'छवि' को लेकर मीडिया में जब-तब खबरें आती रहती हैं।
पर, हाल में हुई कुछ घटनाओं ने इस छवि को खासा धक्का पहुंचाया है। केंद्रीय वित्त मंत्री का लोकायुक्त को लिखा एक पत्र हाल में सामने आया जिसमें राज्य के सूचना विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच का अनुरोध किया गया है। यह सबसे नया विवाद है जिससे योगी जूझ रहे हैं। यह चिट्ठी ऐसे पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर सामने आई जो कभी योगी आदित्यनाथ खेमे के करीबी माने जाते थे। विभाग के एक रिटायर्ड उपनिदेशक ने इस किस्म की अनियमितताओं को सही कहा है जिससे इस पत्र की पुष्टि होती है।
विभाग मुख्यमंत्री कार्यालय के मातहत है, इसलिए भी इसमें भ्रष्टाचार का मसला गरमा गया है। लोकायुक्त जांच का अनुरोध मार्च 2025 में किया गया। हालांकि, इस पर किसी प्रगति की अब तक कोई जानकारी नहीं है। सूचना विभाग पर राज्य और मुख्यमंत्री की छवि बनाने के प्रचार का जिम्मा है। अगस्त 2024 में रिटायर हुए उपनिदेशक की बात मानी जाए, तो विभाग का वार्षिक बजट आठ साल में 3,600 करोड़ हो गया है। सन 2000 में यह 25 करोड़ था।
कोई पत्रकार या मीडिया से जुड़ा कोई व्यक्ति विभाग में ऐसी किसी कारगुजारी पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। रिटायर्ड उपनिदेशक ने आरोप लगाया है कि अखबारों और टीवी के विज्ञापनों तथा प्रचार कार्यक्रमों के लिए जारी किए जाने वाले विज्ञापनों के लिए कमीशन लेना-देना सामान्य बात हो चुकी है। उनका कहना है कि इनमें से अधिकतर काम विभाग ने आउटसोर्स कर दिया है और इन सबके बारे में फैसला कुछ खास लोग ही लेते हैं।
... वही पत्ते हवा देने लगेचर्चा का एक अन्य विषय वे आरोप हैं जो कुछ मंत्री अपने ही विभागीय अधिकारियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर लगा रहे हैं। कम-से-कम चार मंत्रियों ने इसी साल 15 मई से 15 जून के बीच अपने ही विभागों में ट्रांसफर हुए कई अधिकारियों से बातचीत में पाया कि इनके पीछे 'बाहरी तत्वों' का हाथ रहा है। उनलोगों का दावा है कि इन तबादलों में कई सैकड़ा करोड़ के घूस के पैसे इस हाथ से उस हाथ गए हैं। स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन, मेडिकल और स्वास्थ्य, पशुपालन और बेसिक शिक्षा विभागों के मंत्रियों ने इस बारे में खुलकर कहा है। खास बात यह भी है कि मुख्यमंत्री ने ऐसे 1,000 तबादलों को रद्द करने के साथ इनकी जांच के आदेश भी दिए हैं।
विपक्षी नेताओं ने इस बहाने सरकार पर आरोप लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। समाजवादी पार्टी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो कहा है कि 'राज्य में सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं।' उन्होंने कहा कि यह पैसा बनाने का रैकेट है और सरकारी विभाग न सिर्फ इच्छा के अनुरूप तबादले बल्कि किसी भी बात के लिए निश्चित कीमत वाले 'बाजार' बन गए हैं। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने भी इस पर चिंता जताई है और इस किस्म के भ्रष्टाचार की एसआईटी जांच की मांग की है। कड़े शब्दों में जारी बयान में उन्होंने मुख्यमंत्री से सरकार के इकबाल की रक्षा के लिए 'सख्त' कदम उठाने की सलाह दी है।
अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले एक रिटायर्ड मुख्य सचिव ने इसे 'गंभीर रोग का लक्षण' बताया है। उन्होंने कहा कि सभी स्तरों पर सरकारी कर्मचारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग राज्य में अब पूरी तरह उद्योग है।
पीछा नहीं छोड़ रहा महाकुंभ का प्रेतबीबीसी हिन्दी की दो पार्ट वाली डॉक्यूमेंट्री सरकार के लिए एक अलग ही सिरदर्द है। इसमें सरकार के इस दावे को चुनौती दी गई है कि महाकुंभ मेले के दौरान 29 जनवरी को हुई भगदड़ में सिर्फ 32 श्रद्धालुओं की ही मौत हुई। बीबीसी के पत्रकारों ने भगदड़ में मरे सात राज्यों के कम-से-कम 82 लोगों की पहचान की और उनके परिजनों के घरों तक गए। इनमें से कुछ को 10 से 25 लाख तक के मुआवजे मिले हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें यूपी सरकार से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।
यह तो हुआ ही, प्रयागराज के प्रमंडलीय आयुक्त ने विभागीय जांच में पाया है कि महाकुंभ के लिए प्रयागराज और आसपास बनाई गई 42 प्रतिशत सड़कें निर्माण की दृष्टि से कमजोर और मानक से कमतर थीं। जांच में पाया गया कि इस आयोजन के लिए भारी-भरकम बजट था लेकिन 'विकास' के नाम पर जो इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया, वह पांच माह बाद ही टूटने-ढहने लगा।
बीजेपी में भी असंतोष बढ़ रहा है। निजी बातचीत में कुछ विधायकों ने अपनी व्यथा सुनाई जबकि कुछ ने नई दिल्ली के कुछ 'शक्तिशाली लोगों' द्वारा षडयंत्र रचने का संदेह जताया। भ्रष्टाचार बढ़ते जाने की बात अलग भी कर दें, तो उनका कहना था कि बीबीसी डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए जिस तरह सूचनाएं मिली हैं, उससे लगता है कि खुफिया एजेंसियों ने भी उनलोगों को कुछ सूचनाएं मुहैया कराईं।
इस डॉक्यूमेंट्री और राज्य सूचना विभाग पर राज्य सरकार ने चुप्पी साध रखी है। लेकिन 'ट्रांसफर गोरखधंधा' और 'इन्फ्रास्ट्रक्चर घोटाला' खुद सरकार के स्तर पर सामने आया है और योगी के लिए इससे उबरना मुश्किल भरा होगा क्योंकि पंचायत और शहरी निकाय चुनाव नजदीक हैं जबकि 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
(मिनी बंद्योपाध्याय दिल्ली की स्वतंत्र पत्रकार हैं।)You may also like
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