New Delhi, 22 जुलाई . भारतीय शास्त्रीय संगीत ने देश को अनगिनत रत्न दिए हैं, जिन्होंने न केवल इस देश की समृद्ध परंपरा को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया, बल्कि भारतीय और पश्चिमी संगीत का अनूठा मिश्रण भी पेश किया. इनमें से एक चमकता सितारा हैं डॉ. एल. सुब्रमण्यम, जिन्हें ‘भारतीय वायलिन का पगनिनी’ भी कहा जाता है. अपनी असाधारण वायलिन वादन शैली, कर्नाटक संगीत की गहरी समझ और ग्लोबल फ्यूजन की रचनाओं के माध्यम से उन्होंने भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी.
सुब्रमण्यम भारतीय शास्त्रीय संगीत (कर्नाटक संगीत) और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में अपनी असाधारण प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने वैश्विक संगीत को एक नया आयाम दिया, जिसमें भारतीय और पश्चिमी संगीत का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है.
एल. सुब्रमण्यम का जन्म 23 जुलाई 1947 को चेन्नई में एक संगीतमय परिवार में हुआ. उनके पिता प्रोफेसर वी. लक्ष्मीनारायण एक मशहूर वायलिन वादक और उनकी मां वी. सीतलक्ष्मी एक गायिका और वीणा वादक थीं. बताया जाता है कि सुब्रमण्यम ने महज पांच साल की उम्र से पहले ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था और छह साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला परफॉर्मेंस दिया. कुछ समय तक उनका परिवार श्रीलंका के जाफना में रहा और उसके बाद उनका परिवार श्रीलंका में तमिल विरोधी दंगों के कारण चेन्नई वापस आ गया.
इंडियन कल्चर की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, डॉ. लक्ष्मीनारायण सुब्रमण्यम को कर्नाटक संगीत और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत दोनों में महारत हासिल है. उन्होंने अपने पिता की देखरेख में कम उम्र में अपना संगीत प्रशिक्षण शुरू किया और 6 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम पेश किया. उन्होंने 1970 के दशक के बाद से लगातार अपने संगीत को रिकॉर्ड किया है और उन्होंने एकल एल्बम के अतिरिक्त येहुदी मेनुहिन और हेरबी हैनकॉक जैसे कई साथी संगीतकारों के साथ मिलकर एल्बम जारी किए हैं. उन्होंने कई प्रतिष्ठित कर्नाटक संगीत गायकों जैसे शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर और एम. बालमुरलीकृष्ण के साथ प्रदर्शन किए हैं. उन्होंने नृत्य-नाटकों, वादक समूहों (आर्केस्ट्रा) और फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया है और लक्ष्मीनारायण विश्व संगीत मेले (लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल) की स्थापना की है.
सुब्रमण्यम ने संगीत के साथ-साथ मेडिकल क्षेत्र में भी रुचि दिखाई. उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की. हालांकि, संगीत के प्रति उनके जुनून के आगे डॉक्टर के रूप में उनका कार्यकाल कुछ समय का ही रहा. बाद में वे फिर से संगीत के क्षेत्र में एक्टिव हुए और उन्होंने कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में मास्टर डिग्री और जैन यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से रागा हार्मनी पर शोध के लिए पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.
सुब्रमण्यम ने 1973 से अब तक 200 से अधिक रिकॉर्डिंग्स की हैं, जिनमें सिंगल एल्बम और विश्व के प्रसिद्ध संगीतकारों जैसे येहुदी मेनुहिन, स्टेफन ग्रेप्पेली, जॉर्ज हैरिसन और हेर्बी हैनकॉक के साथ सहयोग शामिल हैं. इसके अलावा, उन्होंने हिंदुस्तानी संगीतकारों जैसे उस्ताद अली अकबर खान और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ भी जुगलबंदी की. सुब्रमण्यम ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा को अपनी वायलिन के तारों में पिरोकर उसे विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया. 1970 के दशक में उन्होंने ग्लोबल फ्यूजन संगीत की अवधारणा को जन्म दिया, जिसमें कर्नाटक संगीत, पश्चिमी शास्त्रीय संगीत, जैज और अन्य वैश्विक शैलियों का संगम देखने को मिलता है.
सुब्रमण्यम ने मीरा नायर की फिल्मों जैसे सलाम बॉम्बे (1988) और मिसिसिपी मसाला (1991) के लिए म्यूजिक बनाया. उन्होंने बर्नार्डो बेर्तोलुची की लिटिल बुद्धा (1993) और मर्चेंट-आइवरी की कॉटन मैरी (1999) में वायलिन वादक के रूप में भी योगदान दिया.
1992 में उन्होंने अपने पिता की स्मृति में लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल की स्थापना की, जो विश्व भर में आयोजित होता है. इस फेस्टिवल में येहुदी मेनुहिन, स्टैनली क्लार्क, और रवि कोलट्रेन जैसे कलाकारों ने प्रदर्शन किया है.
भारतीय संगीत में योगदान देने के लिए सुब्रमण्यम को 1988 में पद्म श्री, 2001 में पद्म भूषण और 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मानों से नवाजा गया है. इसके अलावा, उन्हें 1981 में ग्रैमी नामांकन भी मिला था. उनके पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनकी पहली शादी विजयाश्री (विजी) सुब्रमण्यम से हुई, जो एक प्रसिद्ध गायिका थीं और 1995 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया था. हालांकि, उन दोनों के चार बच्चे हैं. इसके अलावा, 1999 में उन्होंने मशहूर प्लेबैक सिंगर कविता कृष्णमूर्ति से शादी की, जिनसे उनका एक बेटा भी है.
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एफएम/जीकेटी
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