बांकुड़ा, 1 अक्टूबर . महाष्टमी की संध्या पर बांकुड़ा के विष्णुपुर में प्राचीन परंपरा के अनुसार फिर से गूंज उठी तोप. इसकी गर्जना सुनते ही शहर के हर कोने में भक्तों और इतिहास प्रेमियों में उत्साह और आस्था की लहर दौड़ गई. यहां हजार वर्षों से चली आ रही यह परंपरा मल्ल राजाओं की स्मृति को जीवित रखे हुए है.
मृण्मयी मंदिर और ऐतिहासिक महत्व किसी से अछूता नहीं है.
विष्णुपुर का सबसे प्राचीन मंदिर मृण्मयी मंदिर राजा जगत मल्ल द्वारा 997 ईस्वी में स्थापित किया गया था. स्थानीय इतिहास के अनुसार राजा जगत मल्ल ने देवी मां मृण्मयी से दिव्य मार्गदर्शन प्राप्त करने के बाद अपनी राजधानी प्रद्युम्न पुरी से विष्णुपुर स्थानांतरित की. उन्होंने यहां देवी मां के लिए पहला मंदिर समर्पित किया. दुर्भाग्यवश वह मूल मंदिर अब मौजूद नहीं है और इसे राधे श्याम मंदिर के पास स्थित नवनिर्मित संरचना के रूप में ही मृण्मयी मंदिर के नाम से जाना जाता है.
मां मृण्मयी ने राजा को स्वप्न में आकर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था. यहां देवी दुर्गा की पूजा मां मृण्मयी के रूप में की जाती है. हालांकि मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ, लेकिन गंगा की मिट्टी से बनी मूर्ति वैसी ही सुरक्षित रही, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है.
इतिहासकारों के अनुसार ख्रिस्तीय वर्ष 997 में 19वें मल्ल राजा को स्वप्न में देवी मृण्मयी का दर्शन हुआ. उसी वर्ष से देवी की आराधना और दुर्गोत्सव की परंपरा प्रारंभ हुई. तब से अब तक यह 1029 वर्ष से लगातार मनाई जा रही है. राजपरिवार के उत्तराधिकारी आज भी इस पवित्र परंपरा का पालन कर रहे हैं.
दुर्गोत्सव की परंपराएं और महत्व के संदर्भ में ,बंगाल की सबसे प्राचीन दुर्गा पूजा के रूप में इसे जाना जाता है. उत्सव की शुरुआत मिट्टी के बर्तन या घट की स्थापना से होती है और इसके बाद क्रमशः बड़ी ठकुरानी, मझली ठकुरानी और छोटी ठकुरानी की पूजा होती है. महाष्टमी की संध्या पर मंदिर के पास मोर्चा पहाड़ पर गूंजती है तपोध्वनि जिसे तोप की गर्जना के रूप में माना जाता है. यह ध्वनि देवी की महापूजा और सब्जियों की बलि के प्रारंभ का प्रतीक है.
ग्राम के वरिष्ठजन बताते हैं कि यह पर्व केवल धार्मिक महत्व का नहीं बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है. 1029 वर्ष पुरानी यह परंपरा मल्ल राजाओं की स्मृति भक्तिपूर्ण आस्था और इतिहास का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करती है. दर्शनार्थियों के लिए यह अनुभव आस्था और इतिहास का अनूठा मेल है.
बांकुड़ा प्रशासन और स्थानीय राजपरिवार हर वर्ष इस पर्व को सुरक्षित और पारंपरिक रूप में मनाने के लिए विशेष इंतजाम करते हैं.
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/ अभिमन्यु गुप्ता
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