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तुर्किये के साथ व्यापारिक संबंध तोड़े भारत, सेब आयात पर लगे प्रतिबंध: जयराम ठाकुर

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मंडी, 16 मई . हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भारत सरकार से टर्की के साथ सभी व्यापारिक समझौतों को रद्द करने की मांग की है. मंडी में शुक्रवार को तिरंगा यात्रा के बाद पत्रकारों से बातचीत में ठाकुर ने कहा कि हाल ही में भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान टर्की और चीन ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया. तुर्किये ने पाकिस्तान को ड्रोन और तकनीकी सहायता प्रदान की, जो भारत के हितों के विपरीत है.

जयराम ठाकुर ने कहा, “जब तुर्किये में भूकंप से तबाही हुई थी, तब भारत ने मानवीय आधार पर उनकी हरसंभव मदद की थी. लेकिन अब उसकी हरकतें बर्दाश्त से बाहर हैं. आज हर भारतवासी की यही भावना और सोच है कि टर्की के साथ सभी तरह के संबंधों को समाप्त कर देना चाहिए. हिमाचल के लोगों की विशेष रूप से यह भावना और मांग है कि टर्की से आयात किए जाने वाले सेब पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा देना चाहिए.”

उन्होंने टर्किश टूरिज्म पर भी निशाना साधा. ठाकुर ने कहा, “टर्की की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान है. हर साल लाखों भारतीय टर्की घूमने जाते हैं. भारतीयों को अब टर्की की बजाय अपने देश के पर्यटन स्थलों को प्राथमिकता देनी चाहिए. इससे न केवल टर्की को आर्थिक सबक मिलेगा, बल्कि हिमाचल और अन्य राज्यों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. मैं भारतीयों से अपील करता हूं कि वे देश के पर्यटन स्थलों को बढ़ावा दें ताकि स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो.”

शुक्रवार को मंडी के पड्डल मैदान से सेरी मंच तक भाजपा ने तिरंगा यात्रा निकाली. इस यात्रा में स्थानीय लोगों के साथ भाजपा के तमाम कार्यकर्ताओं और नेताओं ने हिस्सा लिया. लोगों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाए. यात्रा में स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के बच्चों ने भी हिस्सा लिया और भारतीय सेना के शौर्य को सलाम किया.

वहीं हिमालयी सेब उत्पादकों के संगठन “हिमालयन एप्पल ग्रोअर्स सोसाइटी” ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तुर्की से सेब आयात पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की है. संगठन का कहना है कि तुर्किये से बढ़ते सेब आयात ने हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों को आर्थिक संकट में डाल दिया है. पत्र में संगठन ने बताया कि इन राज्यों में लाखों परिवार सीधे तौर पर सेब उत्पादन और उससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर हैं. यह केवल उनकी आजीविका का प्रश्न नहीं, बल्कि इन राज्यों की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है.

एकेएस/केआर

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