New Delhi, 21 अगस्त . भारतीय पंचांग के अनुसार, 22 अगस्त 2025 को पिठोरी अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा. यह एक ऐसा दिन है, जो हमें हमारे पितरों की याद दिलाता है और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने का अवसर देता है. भारतीय संस्कृति में यह दिन विशेष रूप से पितरों की पूजा, तर्पण और श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जब हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान अर्पित करते हैं. पिठोरी अमावस्या का पर्व हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है.
22 अगस्त को पिठोरी अमावस्या की चतुर्दशी तिथि दोपहर 11 बजकर 56 मिनट तक रहेगी, इसके बाद अमावस्या तिथि शुरू होगी. इस दिन खासकर पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिससे पितृ दोष का निवारण होता है और परिवार में सुख-शांति का वास होता है. जो लोग पितृ दोष से परेशान हैं, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन किया गया तर्पण उनके जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है.
पूजा की विधि भी इस दिन के महत्व को और बढ़ाती है. इस दिन स्नान करने के बाद पितरों को तिल, जल और अन्न अर्पित किया जाता है, साथ ही ब्राह्मणों को भोजन और दान देने का भी विशेष महत्व है. पितरों को तर्पण और पिंडदान अर्पित करने से परिवार में समृद्धि आती है और जीवन में हर क्षेत्र में प्रगति होती है. भादो की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं. कुशोत्पाटिनी का अर्थ ‘कुशा का संग्रह करना’ है. धार्मिक कार्यों में प्रयोग होने वाली कुशा का इस दिन संग्रह किया जाता है. कुश का प्रयोग एक महीने तक किया जा सकता है.
खास धार्मिक नियम और मुहूर्त भी होते हैं. ब्रह्म मुहूर्त से लेकर शुभ मुहूर्त तक पूजा करने से काफी लाभ मिलता है. वहीं, राहुकाल से बचते हुए इस दिन श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करना सर्वोत्तम होता है.
पिठोरी अमावस्या का पर्व न केवल पितरों को शांति और सम्मान देने का दिन है, बल्कि यह हमारे जीवन को एक नई दिशा और सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करता है. इस दिन की पूजा से पितरों का आशीर्वाद तो मिलता ही है, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास भी होता है.
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पीके/केआर
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