New Delhi, 11 सितंबर . 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था. इस ऐतिहासिक आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में गोरखनाथ मठ के भूतपूर्व पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ भी शामिल थे, जिन्होंने राम मंदिर के प्रति अपनी अटूट निष्ठा और नेतृत्व से इस आंदोलन को नई दिशा दी.
1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष बनकर उन्होंने हिंदू समाज के विभिन्न संप्रदायों के धर्माचार्यों को एकजुट किया और आंदोलन को गति प्रदान की. 1990 में कारसेवा के दौरान विवादित ढांचे पर पूजा का आयोजन उनके दृढ़ संकल्प का प्रतीक था. उनका मानना था कि राम मंदिर निर्माण तक वे चैन से नहीं बैठेंगे.
महंत अवैद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कांड़ी गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बताया जाता है कि बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिसका उनके जीवन पर बड़ा असर पड़ा.
उनका जीवन आध्यात्मिक साधना, राजनीतिक सक्रियता और लोक कल्याण के लिए समर्पित रहा. युवावस्था में उन्होंने हिमालय, कैलाश मानसरोवर, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे तीर्थस्थलों की यात्राएं कीं. 1940 में बंगाल यात्रा के दौरान वे महंत दिग्विजयनाथ से मिले, जो गोरखनाथ मठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर थे. 8 फरवरी 1942 को महज 23 साल की आयु में महंत दिग्विजयनाथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और नाम ‘अवैद्यनाथ’ दिया. 1969 में दिग्विजयनाथ के निधन के बाद वे गोरक्षपीठ के पूर्ण पीठाधीश्वर बने.
गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर की जिम्मेदारी संभालने से कुछ साल पहले ही महंत अवैद्यनाथ का राजनीतिक सफर शुरू हुआ. वे हिंदू महासभा के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मानीराम सीट से चुने गए. वे 1962, 1967, 1974 और 1977 में विधायक रहे. इसके बाद Lok Sabha में भी किस्मत आजमाई और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर सीट से सांसद चुने गए. बाद में वे भाजपा से जुड़े. उनकी राजनीति हिंदुत्व और सामाजिक न्याय पर आधारित थी.
1980 के दशक में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में हरिजनों के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से आहत होकर वे सक्रिय राजनीति में उतरे, ताकि उत्तर भारत में ऐसा न फैले. उन्होंने जाति-पाति से ऊपर उठकर हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया. 1998 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जिन्हें उन्होंने 1998 में सबसे कम उम्र के सांसद का दर्जा दिलाया.
वे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से चार बार Lok Sabha सांसद चुने गए और हिंदू महासभा तथा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे. साथ ही महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि आंदोलन को भी धार दी. 1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष बने. उन्होंने हिंदू समाज के विभिन्न संप्रदायों के धर्माचार्यों को एकजुट किया और आंदोलन को गति दी. 1990 में कारसेवा के दौरान विवादित ढांचे पर पूजा का आयोजन किया था.
राजनीति और धार्मिक कार्यों के अलावा, गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर के रूप में महंत अवैद्यनाथ ने मठ को सामाजिक और शैक्षिक केंद्र बनाया. वे महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष थे और मासिक पत्रिका ‘योगवाणी’ के संपादक रहे. मठ से संबद्ध लगभग तीन दर्जन संस्थाएं शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक कल्याण से जुड़ी थीं. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और लोक कल्याण को सर्वोपरि माना.
महंत अवैद्यनाथ का निधन 12 सितंबर 2014 को गोरखपुर में हुआ. नाथ परंपरा के अनुसार, उन्हें पद्मासन मुद्रा में समाधि दी गई थी.
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एफएम/डीएससी
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