New Delhi, 11 अगस्त . डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई, यह नाम सिर्फ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक होने की वजह से नहीं, बल्कि एक ऐसे वैज्ञानिक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने विज्ञान को प्रयोगशालाओं की सीमाओं से निकालकर आम जन के जीवन में उतारने का सपना देखा और उसे साकार करने का साहस भी किया.
12 अगस्त 1919 को Ahmedabad के एक प्रगतिशील और समृद्ध उद्योगपति परिवार में जन्मे साराभाई बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा और जिज्ञासु मस्तिष्क के धनी थे. उनके घर में रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, और सीवी रमन जैसे महान व्यक्तित्वों का आना-जाना सामान्य था, जिसने उनके सोचने-समझने के दायरे को असाधारण रूप से व्यापक बनाया.
इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राकृतिक विज्ञान में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने सर सीवी रमन के मार्गदर्शन में ब्रह्मांडीय किरणों पर अनुसंधान शुरू किया और जल्द ही इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली. लेकिन विक्रम साराभाई की दृष्टि केवल शोध-पत्रों और वैज्ञानिक पदकों तक सीमित नहीं थी. वे भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए विज्ञान को प्रत्यक्ष रूप से काम में लाने के प्रबल समर्थक थे.
1957 में रूस द्वारा स्पुतनिक उपग्रह के प्रक्षेपण ने उनके भीतर अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अग्रणी बनाने का संकल्प और प्रबल कर दिया. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना की और तिरुवनंतपुरम के पास थुम्बा में देश का पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र शुरू किया, जहां 1963 में पहला रॉकेट लॉन्च हुआ. यह वही बीज था, जिसने आगे चलकर इसरो का रूप लिया और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में विश्व मंच पर प्रतिष्ठित स्थान दिलाया.
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर में साराभाई की नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा करते हुए लिखा, “प्रो. साराभाई पूरी टीम के साथ काम की प्रगति की खुलेआम समीक्षा करते थे. वे कभी निर्देश नहीं देते थे. बल्कि, विचारों के मुक्त आदान-प्रदान के माध्यम से, वे हमें नए क्षेत्रों में आगे ले जाते थे, जहां अक्सर अप्रत्याशित समाधान सामने आते थे… उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, ‘देखिए, मेरा काम निर्णय लेना है; लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि ये निर्णय मेरी टीम के सदस्यों द्वारा स्वीकार किए जाएं.’”
वे इस बात को भली-भांति समझते थे कि अंतरिक्ष तकनीक का उद्देश्य केवल चंद्रमा या मंगल पर झंडा गाड़ना नहीं है, बल्कि दूरस्थ गांवों तक शिक्षा, मौसम पूर्वानुमान, संचार और आपदा प्रबंधन जैसी सेवाएं पहुंचाना है. उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (एसआईटीई) जैसे प्रोजेक्ट अस्तित्व में आए, जिन्होंने शिक्षा और सूचना के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए.
डॉ. साराभाई सिर्फ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि एक असाधारण संस्थान निर्माता भी थे. भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) Ahmedabad, सामुदायिक विज्ञान केंद्र, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र जैसे कई प्रतिष्ठित संस्थान उनके विजन और नेतृत्व का परिणाम हैं. उन्होंने होमी भाभा के निधन के बाद परमाणु ऊर्जा आयोग की बागडोर संभाली और ऊर्जा, उद्योग, शिक्षा, कला- हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी.
पद्म भूषण (1966) और मरणोपरांत पद्म विभूषण (1972) जैसे सम्मानों से अलंकृत साराभाई ने अपने जीवन से यह साबित किया कि सच्चा वैज्ञानिक वह है जो विज्ञान को मानवता की सेवा में लगाए.
30 दिसंबर 1971 को जब वे इस दुनिया को अलविदा कह गए, तब भी उनके अधूरे सपने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उड़ान में जीवित थे. आज भी जब कोई भारतीय उपग्रह अंतरिक्ष में पहुँचता है, तो उसकी गूंज में विक्रम साराभाई की आवाज सुनाई देती है.
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पीएसके/केआर
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