नई दिल्ली, 24 जून . 25 जून 1908 को अंबाला के एक साधारण परिवार में जन्मी एक साधारण लड़की ने भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में असाधारण भूमिका निभाई. वह आजाद भारत में किसी राज्य की पहली मुख्यमंत्री रहीं. यह सच्ची कहानी है सुचेता कृपलानी की. जब भारत अंग्रेजी सत्ता के शिकंजे में था और महिलाओं के लिए राजनीति में प्रवेश असंभव माना जाता था, उस वक्त सुचेता ने न केवल उस दरवाजे को खोला, बल्कि उसमें महिला सशक्तीकरण की नींव भी रख दी.
दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से स्नातक और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षिका रहीं सुचेता कृपलानी का शुरुआती जीवन उपलब्धियों से भरा था. लेकिन, यह केवल एक शुरुआत थी. 1936 में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी आचार्य जेबी कृपलानी से विवाह किया और 1938 में कांग्रेस पार्टी से जुड़कर अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. वहीं से उनके भीतर की ‘क्रांतिकारी महिला’ जाग उठी.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता कृपलानी का योगदान और 1944 में गिरफ्तारी के बाद एक साल की लंबी हिरासत ने उनके व्यक्तित्व को निखारा. इस दौर में सुभाष चंद्र बोस, नेहरू और पटेल जैसे नेताओं के नाम सुर्खियों में रहे. दूसरी तरफ, सुचेता कृपलानी ने आंदोलन की ‘रीढ़’ बनकर दृढ़ता के साथ काम किया, लेकिन बिना प्रचार के. 1946 में कृपलानी संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गईं और ध्वज प्रस्तुति समिति की अहम सदस्य के रूप में उन्होंने तिरंगे को संसद के सामने प्रस्तुत करने वाली टीम में भूमिका निभाई.
यह भूमिका प्रतीकात्मक नहीं थी, यह एक महिला की उस भारत में हिस्सेदारी का सशक्त प्रमाण थी, जो अब स्वतंत्र होने वाला था.
एक कट्टर गांधीवादी होने के नाते, कृपलानी ने भारत के विभाजन के समय गांधी के साथ बंगाल का दौरा किया, जहां उन्होंने सांप्रदायिक दंगों के दौरान राहत और पुनर्वास कार्य में अग्रणी भूमिका निभाई. कांग्रेस की राहत समिति की सचिव के रूप में उनका काम आज भी मानवीय सेवा का उदाहरण माना जाता है.
यह कहना कि कृपलानी सिर्फ एक ‘स्वतंत्रता सेनानी’ थीं, उनके योगदान को छोटा करना होगा. वह प्रांतीय संसद (1950-52), प्रथम लोकसभा (1952-56) और द्वितीय लोकसभा (1957-62) की सदस्य रहीं. उत्तर प्रदेश में उनका राजनीतिक जीवन सफल रहा और उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य (1943-50) और श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री (1960-1963) सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. 1963 में वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और भारत के किसी राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का इतिहास रच दिया.
एक ऐसे दौर में जब राजनीति में महिलाओं की भागीदारी नाममात्र की थी, उन्होंने प्रशासनिक निर्णयों, श्रमिक नीतियों और औद्योगिक विकास में निपुणता का परिचय दिया. उनकी कार्यशैली सख्त, लेकिन न्यायप्रिय थी. उन्होंने किसी को भी महिला होने का अवसरवादी लाभ नहीं लेने दिया और न ही किसी को यह भूलने दिया कि वह भी देश की रीति-नीति तय करने में सक्षम हैं.
सुचेता कृपलानी ने भारत का प्रतिनिधित्व तुर्की, संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जैसे वैश्विक मंचों पर किया. एशियाई महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण पर हुई संगोष्ठियों में उन्होंने भारतीय महिलाओं की भूमिका पर गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया. वह भारतीय नारीवाद की एक ‘बौद्धिक प्रतिनिधि’ भी थीं.
उन्होंने 1971 में राजनीति से संन्यास लिया. उनका निधन 1974 में हुआ. सुचेता कृपलानी का नाम आज इतिहास की पुस्तकों में कहीं कोनों में सिमट गया है. भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री, संविधान सभा की सदस्य और स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद आज की पीढ़ी उन्हें शायद ही जानती हो.
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पीएसके/एबीएम
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