New Delhi, 15 जुलाई . भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला आज अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से पृथ्वी पर सकुशल लौट आए हैं. इस अवसर पर नासा की पूर्व वैज्ञानिक डॉ. मिला मित्रा ने समाचार एजेंसी से बातचीत में इस मिशन के महत्व और चुनौतियों को रेखांकित किया.
मिशन का महत्व बताते हुए मित्रा ने बताया कि एक्सिओम-4 मिशन भारत के लिए इसलिए खास है, क्योंकि यह पहली बार है, जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर गया और वहां 60 प्रयोगों में हिस्सा लिया. इनमें से 7 प्रयोग इसरो ने डिजाइन किए थे, जो सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में किए गए. इन प्रयोगों में मूंग और मेथी जैसी फसलों का अंतरिक्ष में विकास, मानव शरीर पर शून्य गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव, और मानव-कंप्यूटर इंटरफेस का अध्ययन शामिल था. ये प्रयोग भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों, जैसे गगनयान और लंबी अवधि के अंतरिक्ष स्टेशन मिशनों के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेंगे.
डॉ. मित्रा ने कहा, “यह मिशन विभिन्न देशों को एक साथ लाने का शानदार उदाहरण है. यह सहयोग न केवल वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय एकता को भी दर्शाता है.”
उन्होंने बताया कि लंबे समय तक शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. हृदय की धड़कन बदल जाती है और रक्त का प्रवाह असामान्य हो जाता है, जिससे दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. इसके अलावा, प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर पड़ती है. इन प्रभावों को ठीक करने के लिए, शुभांशु और उनके सहयोगियों को पृथ्वी पर लौटने के बाद 2 हफ्ते से 1 महीने तक रिहैबिलिटेशन से गुजरना होगा. शून्य गुरुत्वाकर्षण के बाद तुरंत चलना मुश्किल होता है. इसके बाद, उन्हें पुनर्वास केंद्र में ले जाया जाएगा, जहां उनकी मांसपेशियों, दृष्टि, और प्रतिरक्षा प्रणाली को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल बनाने के लिए चिकित्सीय प्रक्रियाएं की जाएंगी.
डॉ. मित्रा ने कहा, “शुभांशु का आईएसएस पर अनुभव गगनयान मिशन के लिए बहुत मूल्यवान है. वे अब जानते हैं कि अंतरिक्ष में कैसे रहना है, कैसे काम करना है और वापसी की प्रक्रिया क्या है.”
उन्होंने इस मिशन को भारत के लिए गर्व का क्षण बताया और कहा, “शुभांशु शुक्ला न केवल पहले भारतीय हैं जिन्होंने आईएसएस पर कदम रखा, बल्कि वे गगनयान जैसे भविष्य के मिशनों के लिए भी प्रेरणा हैं.
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एसएचके/एएस
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