भारत सहित दुनिया भर में ऐसी कई जनजातिया है जिनकी अलग प्रथाएं होती है। ये खबर आप हिमाचली खबर में पढ़ रहे हैं। । कुछ जनजातियों ने बदलते समय के अनुसार प्रथा और कुप्रथाओं को बंद कर दिया है तो कुछ जनजाति आज भी इन प्रथाओं को मानती है। इनमें से एक बांग्लादेश की ‘मंडी’ जनजाति है जो बांग्लादेश के दक्षिण पूर्व में जंगल में रहती है। मंडी जनजाति में एक ऐसी परंपरा है जहां पर एक पिता अपनी बेटी को बहुत ही लाड़ प्यार से पाल पोस कर बड़ा करता है लेकिन जैसे ही बेटी जवान होती है तो फिर वह पिता से पति बन जाता है।
जी हां.. यह सुनकर आपको जरूर थोड़ा अजीब लगेगा और इस तरह की प्रथा से आपको नफरत भी होगी। लेकिन यह परंपरा मंडी जनजाति में आज भी चल रही है। आइए जानते हैं इस परंपरा के बारे में..
बचपन में रहता पिता और बेटी के जवान होते ही बन जाता है पति दरअसल, बांग्लादेश की मंडी जनजाति में पुरुष कम उम्र की विधवा महिला से शादी करता है और यदि उस महिला के पास एक बेटी है तो यह पहले से ही तय हो जाता है कि उस महिला की बेटी आगे चलकर उसी शख्स के साथ शादी कर लेती है जो बचपन में उसका पिता रहता है।

जी हां.. जो बच्ची एक समय पर उस शख्स को अपना पिता मानती है और पिता बुलाती है, लेकिन आगे चलकर इस बच्ची को अपने ही पिता को पति मानना पड़ता है। हालांकि, इस परंपरा को निभाने के लिए बच्ची का सोतेला बाप होना जरूरी है। इस परंपरा को निभाने के पीछे का तर्क यह बताया जाता है कि, पति अपनी पत्नी और बेटी दोनों को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकता है।
मंडी जनजाति की ओरोला ने सुनाई अपनी कहानी मीडिया रिपोर्ट्स के माने तो मंडी जनजाति की ओरोला ने इस परंपरा से जुड़ी बातें साझा की थी। उन्होंने बताया था कि जब वह छोटी थी तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। ऐसे में उसकी मां ने नॉटेन नाम के एक शख्स से दूसरी शादी रचा ली। लेकिन जब वह बड़ी हुई तो पता चला कि उसका पिता ही उसका पति है।

ओरोला ने बताया था कि, वह बचपन में अपने पिता को बहुत पसंद करती थी क्योंकि वह उसकी काफी अच्छे से देखभाल करते थे और किसी चीज की कमी नहीं होने देते थे। लेकिन जब वह बड़ी हुई तो उसे पता चला कि, वह 3 साल की थी तभी उसकी शादी उसके पिता से करवा दी गई। हालांकि ओरोला कोई पहली बच्ची नहीं है जिसके साथ इस तरह की कुप्रथा निभाई गई है। मंडी जनजाति में ऐसी कई बच्चियां है जिनकी जिंदगी इस तरह की कुप्रथा निभाने के लिए बर्बाद कर दी गई।
हो सकता है कि इस जनजाति के लिए यह प्रथा काफी महत्व वाली होगी। लेकिन बदलते इस दौर में इसका कोई भी महत्व नहीं रह जाता। वहीं मीडिया रिपोर्ट की मानें तो धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को तोड़ रहे हैं। वहीं कई ऐसी महिलाएं ऐसी भी है जो अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए दूसरी शादी नहीं रचा रही है। हालांकि इस जनजाति में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस परंपरा को खुशी-खुशी निभा रहे हैं।
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