विश्व का सातवां अजूबा ताजमहल की सुंदरता सालों से बरकरार है। लोग आज भी ताजमहल देखकर दीवाने हो जाते हैं। सालों से खुली धूप और गर्मी, बरसात, जाड़े के बीच खड़े ताज की खूबसूरती के पीछे बहुत बड़ा राज है। सफ़ेद संगमरमर से बना यह महल दूर से देखने में अद्भुत छवि प्रकट करता है। वैसे तो स्वर्ग की व्याख्या सिर्फ शब्दों में की जाती है। लेकिन शब्द और कल्पना से परे ताज महल भी किसी स्वर्ग से कम नहीं दिखता। लेकिन क्या आपको पता है कि सुंदरता के प्रतीक ताजमहल की सफाई का काम एक खास तरीके से किया जाता है, जिसमें पाकिस्तान से मंगवाई गई कुछ चीजों का विशेष हाथ होता है। जिसकी बदौलत ताज अपनी चमक बरकरार रखता है। क्या है इसकी खूबसूरती का राज, इसका आज हम खुलासा करेंगे।
आगरा के ताजमहल की ख़ूबसूरती ने कौन वाकिफ नहीं है। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल को साढ़े तीन सौ सालों से बचाए रखने के लिए खास मेकअप किया जाता रहा है। जो इस साल भी किया जाना है। इस साल भी गर्मियां शुरू होते ही ताज के पत्थरों को बचाने और पीलापन खत्म करने के लिए विशेष रसायनों के साथ मिलाकर मुल्तानी मिट्टी का एक लेप तैयार किया गया है। इसे ‘मड पैकिंग’ नाम दिया गया है। इसको लगाने से एक तरफ जहां ताज को सूर्य की तेज किरणों और गर्मी से सुरक्षा मिलेगी। वहीं, रसायन और पत्थरों का पीलापन भी काफी हद तक कम हो जाएगा।
इसे मड पैकिंग भी कहते हैं। मुल्तानी मिट्टी का पेस्ट बनाया जाता है। पहले पानी का छिड़काव होता है और फिर उस जगह पर मजदूर पेंट करने वाले बड़े ब्रशों की मदद से पूरे ताजमहल में इसका लेप लगाते हैं। पूरे ताजमहल में लेप लगाने का काम तीन से चार महीने का समय ले लेता है। इस क्ले की खासियत होती है कि ये गंदगी, तैलीय प्रदूषण और अन्य केमिकल को खुद में एब्जॉर्ब कर लेती है।
जब ये सूखती है तो इसके कण गंदगी को समाहित करके झड़ते हैं। जैसे-जैसे क्ले सूखती है, ये प्रक्रिया चलती रहती है। इसके झड़ने के बाद इसे फिर पानी से धो दिया जाता है। इसके बाद ताजमहल की चमक अपने चरम पर होती है, जिसे देख आप इसकी ख़ूबसूरती में खो जाते हैं। ताजमहल को साफ करने के लिए सालभर में कितने बार ऐसा होता है। पहले तो ताज में केवल एक बार मड पैकिंग करके उसकी सफाई की जाती थी लेकिन अब ये साल में दो बार होने लगी है।
ताजमहल को बचाने के लिए ये प्रक्रिया बीते साढ़े तीन सौ सालों से चली आ रही है। जिसमें खासकर पाकिस्तान के मुल्तान में पाई जाने वाली विशेष मिट्टी, जिसे हम और आप मुल्तानी मिट्टी के नाम से जानते हैं। उसका लेप लगाया जाता है। मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग भारत में महिलाएं मेकअप से पहले चेहरा धुलने में करती हैं। इसे सिंध से लाकर भारत में जगह जगह पहुंचाने का काम अंग्रेजों ने किया। ये मिट्टी ब्रिटेन, अमेरिका के दक्षिण पूर्वी हिस्से, पाकिस्तान के सिंध, जापान, मैक्सिको आदि जगहों में पाई जाती है। वहीं भारत में ये बड़े पैमाने पर पाकिस्तान से खरीदी जाती है।
ताजमहल को खूबसूरत बनाने वाली उस क्ले को फुलेर अर्थ कहा जाता है। इससे न केवल ताज की गंदगी खत्म जाती है। बल्कि उसका रंग भी निखर जाता है, ऐसा बिल्कुल उसी तरह होता है, हम उसे मुल्तानी मिट्टी के नाम से जानते हैं। इसे पॉलिग्रासफाइट या अटापुलगाइट भी कहते हैं, इसमें मैग्नीशियम, एल्यूमिनियम फिलोसिलिकेट होता है। इसका केमिकल फार्मूला (Mg,Al)2Si4O10(OH)।4(H2O) है। जैसे मुल्तानी मिट्टी को चेहरे पर मलकर जब उसे साफ करते हैं, तो उसमें चमक के साथ एक खास आभा आ जाती है।
पाकिस्तान की इस मिट्टी को लोग शरीर के अंगों के लिए दवाई भी कही जाती है। इसका उपयोग पुराने समय से बाल धोने आदि के लिए होता था। आजकल इसे स्नान करने, फेस पैक आदि के लिए इस्तेमाल करते हैं। चर्मरोगों को समाप्त करने एवं त्वचा को मुलायम रखने में इसका बहुत महत्व है।
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