भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच हुआ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) अब ब्रिटिश कंपनियों के लिए एक बड़ा मौका बन चुका है. इस समझौते के बाद, उन्हें भी भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत वो फायदा मिलेगा जो अब तक सिर्फ भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को दिया जाता था.
जैसे ही भारत और ब्रिटेन के बीच का फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लागू हो जाएगा, तब ब्रिटेन की कंपनियों को भी कुछ खास फायदे मिलने लगेंगे. अगर किसी ब्रिटिश कंपनी के बनाए गए सामान या सर्विस का कम से कम 20% हिस्सा ब्रिटेन में तैयार हुआ है, तो भारत उन्हें 'क्लास-2 सप्लायर' मानेगा. अब तक यह दर्जा सिर्फ भारत की कंपनियों के पास था. इससे ब्रिटेन की कंपनियों को भारत में व्यापार करना आसान और फायदेमंद हो जाएगा.
ब्रिटिश कंपनियों को मिलेंगे कुछ खास फायदे
इस ट्रेड एग्रीमेंट के बाद अब ब्रिटिश कंपनियों को 'मेक इन इंडिया' पॉलिसी के तहत कुछ फायदे मिलेंगे, लेकिन भारतीय कंपनियों को अब भी प्राथमिकता दी जाएगी. अगर किसी भारतीय कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विस में 50% से ज़्यादा हिस्सा भारत में बना है, तो उसे पहले की तरह ही 'क्लास-1 लोकल सप्लायर' माना जाएगा.
वहीं, अब ब्रिटेन की कंपनियों के ऐसे प्रोडक्ट जिनमें कम से कम 20% हिस्सा यूके का हो, उन्हें भी भारत में 'लोकल सप्लायर' का दर्जा मिलेगा. पहले ये सुविधा सिर्फ उन भारतीय कंपनियों को मिलती थी जिनके प्रोडक्ट में 20% से 50% तक देशी कंटेंट होता था. हालांकि, सरकार ने कुछ सेक्टर को इस छूट से बाहर रखा है. हेल्थ, एग्रीकल्चर, MSME (छोटे और मझोले उद्योग) से जुड़ी सरकारी खरीद और छोटी रकम वाले सरकारी ठेके इस लिस्ट में शामिल हैं. इन सेक्टर में ब्रिटिश कंपनियों को यह खास लाभ नहीं मिलेगा.
सरकारी कॉन्ट्रैक्ट में मिलेगी UK कंपनियों को एंट्री
भारत और ब्रिटेन के बीच हुए नए ट्रेड एग्रीमेंट के बाद अब ब्रिटिश कंपनियों को भारत में बड़े सरकारी प्रोजेक्ट्स में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा. भारत सरकार करीब 40,000 बड़े टेंडर खोल रही है, जो कि ट्रांसपोर्टेशन, ग्रीन एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर से जुड़े होंगे. ब्रिटेन की कंपनियां इन टेंडर में भारत के सेंट्रल पब्लिक प्रोक्योरमेंट पोर्टल (CPPP) और GeM प्लेटफॉर्म के जरिए हिस्सा ले सकेंगी. इन्हें सभी कवर किए गए प्रोक्योरमेंट्स में नेशनल ट्रीटमेंट (यानी स्थानीय कंपनियों जैसा समान दर्जा) दिया जाएगा.
वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियों को भी ब्रिटेन के सरकारी खरीद बाजार में भेदभाव रहित यानी समान अवसर वाला व्यवहार मिलेगा. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत ने अपनी नीतिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रखी है, ताकि वह माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (MSMEs) को पब्लिक प्रोक्योरमेंट पॉलिसी फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज ऑर्डर के तहत प्राथमिकता देना जारी रख सके.
ब्रिटिश कंपनियों को मिली अब तक की सबसे बड़ी छूट
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव के अनुसार, भारत और यूके के बीच हुए नए व्यापार समझौते में भारत ने पहली बार सरकारी खरीद में ब्रिटिश कंपनियों को बहुत बड़ी छूट दी है. यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी छूट है और इससे यह साफ होता है कि भारत अब सरकारी खरीद को सिर्फ घरेलू उद्योगों के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहता.
इस नए नियम के तहत, ब्रिटिश कंपनियां अपने प्रोडक्ट बनाने में सिर्फ 20% हिस्सा भारत से लेंगी, बाकी 80% हिस्सा वे दूसरे देशों जैसे चीन या यूरोपीय देशों से भी मंगा सकती हैं, फिर भी उन्हें भारत में खास फायदा मिलेगा. इससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे कार्यक्रमों को जो सुरक्षा मिली थी, वह थोड़ी कमजोर हो सकती है.
भारत ने यूके से बेहतर शर्तें भी मानी हैं. जैसे कि यूके में सरकारी खरीद के लिए जो न्यूनतम कीमत तय है, वह भारत की तुलना में बहुत कम है. गूड्स एंड सर्विस के लिए यूके में यह सीमा लगभग 1.6 करोड़ रुपए है, जबकि भारत में करीब 5.5 करोड़ रुपए है. कंस्ट्रक्शन वर्क के लिए दोनों देशों की सीमा लगभग 60 करोड़ रुपए के बराबर है. इसके अलावा, भारतीय कंपनियां भी यूके के कई बड़े सरकारी विभागों जैसे हेल्थ, एजुकेशन, बिजनेस और सड़क कंस्ट्रक्शन के ठेकों में हिस्सा ले सकेंगी.
भारत और यूके ने इस समझौते पर 24 जुलाई को दस्तखत किए, जो 6 मई को हुए समझौते के बाद तीन महीने में हुआ. हालांकि, अभी यह समझौता लागू नहीं हुआ है. इसे लागू करने के लिए दोनों देशों को अपने अपने नियमों और प्रोसेस को पूरा करना होगा.
जैसे ही भारत और ब्रिटेन के बीच का फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लागू हो जाएगा, तब ब्रिटेन की कंपनियों को भी कुछ खास फायदे मिलने लगेंगे. अगर किसी ब्रिटिश कंपनी के बनाए गए सामान या सर्विस का कम से कम 20% हिस्सा ब्रिटेन में तैयार हुआ है, तो भारत उन्हें 'क्लास-2 सप्लायर' मानेगा. अब तक यह दर्जा सिर्फ भारत की कंपनियों के पास था. इससे ब्रिटेन की कंपनियों को भारत में व्यापार करना आसान और फायदेमंद हो जाएगा.
ब्रिटिश कंपनियों को मिलेंगे कुछ खास फायदे
इस ट्रेड एग्रीमेंट के बाद अब ब्रिटिश कंपनियों को 'मेक इन इंडिया' पॉलिसी के तहत कुछ फायदे मिलेंगे, लेकिन भारतीय कंपनियों को अब भी प्राथमिकता दी जाएगी. अगर किसी भारतीय कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विस में 50% से ज़्यादा हिस्सा भारत में बना है, तो उसे पहले की तरह ही 'क्लास-1 लोकल सप्लायर' माना जाएगा.
वहीं, अब ब्रिटेन की कंपनियों के ऐसे प्रोडक्ट जिनमें कम से कम 20% हिस्सा यूके का हो, उन्हें भी भारत में 'लोकल सप्लायर' का दर्जा मिलेगा. पहले ये सुविधा सिर्फ उन भारतीय कंपनियों को मिलती थी जिनके प्रोडक्ट में 20% से 50% तक देशी कंटेंट होता था. हालांकि, सरकार ने कुछ सेक्टर को इस छूट से बाहर रखा है. हेल्थ, एग्रीकल्चर, MSME (छोटे और मझोले उद्योग) से जुड़ी सरकारी खरीद और छोटी रकम वाले सरकारी ठेके इस लिस्ट में शामिल हैं. इन सेक्टर में ब्रिटिश कंपनियों को यह खास लाभ नहीं मिलेगा.
सरकारी कॉन्ट्रैक्ट में मिलेगी UK कंपनियों को एंट्री
भारत और ब्रिटेन के बीच हुए नए ट्रेड एग्रीमेंट के बाद अब ब्रिटिश कंपनियों को भारत में बड़े सरकारी प्रोजेक्ट्स में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा. भारत सरकार करीब 40,000 बड़े टेंडर खोल रही है, जो कि ट्रांसपोर्टेशन, ग्रीन एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर से जुड़े होंगे. ब्रिटेन की कंपनियां इन टेंडर में भारत के सेंट्रल पब्लिक प्रोक्योरमेंट पोर्टल (CPPP) और GeM प्लेटफॉर्म के जरिए हिस्सा ले सकेंगी. इन्हें सभी कवर किए गए प्रोक्योरमेंट्स में नेशनल ट्रीटमेंट (यानी स्थानीय कंपनियों जैसा समान दर्जा) दिया जाएगा.
वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियों को भी ब्रिटेन के सरकारी खरीद बाजार में भेदभाव रहित यानी समान अवसर वाला व्यवहार मिलेगा. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत ने अपनी नीतिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रखी है, ताकि वह माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (MSMEs) को पब्लिक प्रोक्योरमेंट पॉलिसी फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज ऑर्डर के तहत प्राथमिकता देना जारी रख सके.
ब्रिटिश कंपनियों को मिली अब तक की सबसे बड़ी छूट
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव के अनुसार, भारत और यूके के बीच हुए नए व्यापार समझौते में भारत ने पहली बार सरकारी खरीद में ब्रिटिश कंपनियों को बहुत बड़ी छूट दी है. यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी छूट है और इससे यह साफ होता है कि भारत अब सरकारी खरीद को सिर्फ घरेलू उद्योगों के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहता.
इस नए नियम के तहत, ब्रिटिश कंपनियां अपने प्रोडक्ट बनाने में सिर्फ 20% हिस्सा भारत से लेंगी, बाकी 80% हिस्सा वे दूसरे देशों जैसे चीन या यूरोपीय देशों से भी मंगा सकती हैं, फिर भी उन्हें भारत में खास फायदा मिलेगा. इससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे कार्यक्रमों को जो सुरक्षा मिली थी, वह थोड़ी कमजोर हो सकती है.
भारत ने यूके से बेहतर शर्तें भी मानी हैं. जैसे कि यूके में सरकारी खरीद के लिए जो न्यूनतम कीमत तय है, वह भारत की तुलना में बहुत कम है. गूड्स एंड सर्विस के लिए यूके में यह सीमा लगभग 1.6 करोड़ रुपए है, जबकि भारत में करीब 5.5 करोड़ रुपए है. कंस्ट्रक्शन वर्क के लिए दोनों देशों की सीमा लगभग 60 करोड़ रुपए के बराबर है. इसके अलावा, भारतीय कंपनियां भी यूके के कई बड़े सरकारी विभागों जैसे हेल्थ, एजुकेशन, बिजनेस और सड़क कंस्ट्रक्शन के ठेकों में हिस्सा ले सकेंगी.
भारत और यूके ने इस समझौते पर 24 जुलाई को दस्तखत किए, जो 6 मई को हुए समझौते के बाद तीन महीने में हुआ. हालांकि, अभी यह समझौता लागू नहीं हुआ है. इसे लागू करने के लिए दोनों देशों को अपने अपने नियमों और प्रोसेस को पूरा करना होगा.
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