एक गांव में चूड़ाकर्ण नामक एक साधू एक झोपड़ी में रहता था. वह गांव से भिक्षा मांगकर लाता और खाना खाकर बचा हुआ खाना खूंटी पर टांग देता. लेकिन उस झोपड़ी में एक चूहा रहता था, जो सारा खाना चुरा लेता था. साधु ने अपने भिक्षा का कटोरा बहुत ऊंचा टांग दिया. तब भी चूहा वहां उछलकर पहुंच जाता था. साधु इससे बहुत परेशान था. लेकिन वह कभी चूहे को नहीं मारता था.
एक दिन चूड़ाकर्ण से मिलने उसका मित्र मणिकर्ण आया. दोनों काफी समय बाद मिले थे. मित्र से मिलकर साधु बहुत खुश हुए. दोनों जब रात्रि भोज के बाद लेटकर बातें कर रहे थे, तभी मणिकर्ण अपनी बातें बता रहा था. चूड़ाकर्ण बांस की लकड़ी से जमीन पर जोर-जोर से मार रहा था, ताकि चूहा ना आ सके. मणिकर्ण को कुछ भी समझ नहीं आया. उसने पूछा कि मैं तुमसे इतने दिनों बाद मिला हूं. लेकिन तुम मुझसे बात करने की जगह लकड़ी को जमीन पर मार रहे हो, क्या तुम्हें मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा.
चूड़ाकर्ण ने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल मेरी झोपड़ी में एक चूहा है जो मेरे भिक्षा के बर्तन से खाना चुरा लेता है. मणिकर्ण ने इस पर आश्चर्य जताया कि इतना ऊंचे रखे हुए बर्तन में से चूहा कैसे खाना चुरा सकता है. मणिकर्ण ने कहा कि कोई साधारण चूहा ऐसा नहीं कर सकता. इसके पीछे जरूर कोई रहस्य है. दोनों साधु उठे और चूहे के बिल तक पहुंचे.
जब मणिकर्ण ने चूहे का बिल खोदना शुरू किया तो उन्हें चूहे के बिल में से बहुत सारा खाना मिला. दोनों ने खाने को निकाल कर फेंक दिया. 2 दिन में ही खाने के अभाव में चूहा कमजोर हो गया और झोपड़ी छोड़कर चला गया. मणिकर्ण ने अपने मित्र से कहा- देखो मित्र यह चूहा अपने जमा किए हुए भोजन के दम पर इतना ऊंचा उछल कर चोरी कर पा रहा था. हमने इसका संचय किया हुआ धन हटा दिया तो यह भाग गया.
कहानी की सीख
कई बार धन का प्रभाव कमजोर लोगों को भी मजबूत और ताकतवर बना देता है. ऐसे लोगों की ताकत उनके शरीर में नहीं बल्कि उनके घर में जमा किए गए अवैध धन से होती है. अगर इन लोगों का अवैध धन उनसे अलग कर लिया जाए तो व्यक्ति खुद-ब-खुद कमजोर हो जाता है.
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