मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के चर्चित पर्यटन स्थल पहलगाम की जिस बैसरन घाटी की ज़मीन पर चरमपंथी हमला हुआ, वह अपने हरे-भरे ख़ूबसूरत घास के मैदानों के लिए चर्चित है. इस हमले में कम से कम 26 लोगों के मारे जाने की ख़बर है.
जम्मू-कश्मीर की पीर पंजाल रेंज में बसी बैसरन घाटी अनंतनाग ज़िले के पहलगाम से क़रीब पाँच-छह किलोमीटर की दूरी पर है.
बैसरन समुद्र तल से 7500-8000 फीट की ऊँचाई पर है. यह ख़ूबसूरत वादी हरे-भरे घास का एक बड़ा मैदान है. इसके चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के घने जंगल हैं. जंगलों के पार बर्फ़ से ढकी पहाड़ों की ऊँची चोटियाँ, यहाँ के नज़ारे को और दिलक़श बना देती हैं.
ये खुला मैदान गर्मियों में घास और जंगली फूलों के पौधों से भरा रहता है. सर्दियों में इसे बर्फ़ की चादर ढक लेती है.
शायद यही वजह है कि सैलानियों के बीच ये घाटी 'मिनी स्विटज़रलैंड' के नाम से लोकप्रिय है.

यहाँ क़ुदरत का नज़ारा ऐसा मनमोहक होता है कि यहाँ आने वाले सैलानी एक अलग तरह की सुकून का अहसास करते हैं.
पहलगाम इसके सबसे नज़दीकी आबादी वाला क़स्बा है. यहाँ आने वाले सैलानी पहलगाम में ठहरते हैं. फिर दिन के वक़्त पिकनिक मनाने यहाँ आते हैं.
पहलगाम के स्थानीय होटल कारोबारी जावेद अहमद बताते हैं, “जो पर्यटक पहलगाम पहुँचते हैं, वह बैसरन जाने के लिए लालायित रहते ही हैं.”
कच्चे उबड़-खाबड़ रास्तेपहलगाम से बैसरन घाटी तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है. यहाँ पहुँचने के लिए कच्चे उबड़-खाबड़ रास्ते हैं. ये रास्ते चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच से होकर गुज़रते हैं. पर्यटकों के लिए बैसरन पहुँचना ही अपने आप में एक रोमांचक अनुभव होता है. पहलगाम के मुख्य बाज़ार से कई रास्ते बैसरन की तरफ़ जाते हैं. आमतौर पर पर्यटक पहलगाम से खच्चर या घोड़े लेकर बैसरन तक पहुँचते हैं. कुछ लोग पैदल भी जाते हैं.
जब ये रास्ते बैसरन जाकर ठहरते हैं तो सैलानियों के सामने कोमल घास से भरा लहरदार पठार होता है. इसकी ढलानों से नज़रें ऊपर उठाओ तो जंगल के पार बर्फ़ से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ नज़र आती हैं. इन नज़ारों की वजह से ही बैसरन को ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कहा जाता है.
इस प्राकृतिक सौंदर्य ने बैसरन को भारत के पर्यटन नक़्शे पर अहम जगह दी है. यहाँ गर्मियों में तापमान 15 से 25 डिग्री और सर्दियों में शून्य से नीचे चला जाता है.
जावेद अहमद बताते हैं, “बैसरन के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के पेड़ों के घने जंगल हैं. वहाँ कोई आबादी भी नहीं है. कुछ चुनिंदा रेस्त्राँ हैं. इनमें यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए चाय-नाश्ता मिलता है. अब यहाँ ज़िपलाइन या पैराग्लाइडिंग जैसे एडवेंचर स्पोर्ट भी हैं.”
जावेद अहमद बताते हैं, “बैसरन से आगे काफ़ी दूर तक आबादी नहीं है. पहलगाम इसका सबसे नज़दीक़ी आबादी वाला इलाक़ा है.”
सैटेलाइट तस्वीर में देखने पर बैसरन पेड़ों और बर्फ़ से घिरा समतल मैदान सा नज़र आता है. इसकी वास्तविक बनावट किसी प्राकृतिक गोल्फ़ कोर्स जैसी है.
लिदर नदी, पास के कोलाही ग्लेशियर से निकलती है. यह पहलगाम और आसपास के इलाक़े से होकर गुज़रती है. इससे निकलने वाली छोटी-छोटी पहाड़ी नदियाँ इस घाटी के पूरे नज़ारे को और भी ख़ूबसूरत बना देती हैं.
बैसरन बाहरी दुनिया के शोर से अलग है. ये ट्रेकिंग करने वालों की भी पसंदीदा जगह है. लोग यहाँ तस्वीरें लेना पसंद करते हैं.
जावेद अहमद कहते हैं, “पहलगाम में रोज़ाना दो से तीन हज़ार बाहरी पर्यटक आते हैं और इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक बैसरन ज़रूर जाते हैं.”
पहलगाम से बैसरन पहुँचने में पर्यटकों को डेढ़ से दो घंटे तक का समय लग जाता है. हालाँकि पैदल चलने में ये ट्रेक दो से तीन घंटे तक का समय ले लेता है.
22 अप्रैल को जब यहाँ चरमपंथियों ने हमला किया तो नज़दीक़ी पुलिस और सुरक्षा बलों को भी यहाँ तक पहुँचने में करीब बीस मिनट का समय लग गया.
घायलों और मृतकों को हेलीकॉप्टरों और घोड़ों के ज़रिए यहाँ से निकाला गया. बैसरन का सबसे नज़दीक़ी सड़क मार्क श्रीनगर-पहलगाम हाईवे है. पहलगाम से श्रीनगर क़रीब 90 किलोमीटर दूर है. इस सफ़र में दो से तीन घंटे तक का समय लग जाता है.
कश्मीर की ख़ूबसूरत घाटी से गुज़रने वाली ये हाईवे पर्यटकों के आने-जाने और पहलगाम क्षेत्र तक पहुँचने के लिए अहम है. ये अनंतनाग और बिजबेहरा जैसे शहरों से गुज़रता है.
पहलगाम की दूसरी तरफ़ बेताब घाटी है. यह इलाक़ा साल 1983 में आई बॉलीवुड फ़िल्म ‘बेताब’ के बाद से चर्चित हुआ था. इसी से इसका नाम बेताब घाटी पड़ गया.
1970 के दशक से पहलगाम की आसपास की घाटियों में फ़िल्मों की शूटिंग होती रही है. सलमान ख़ान की चर्चित फ़िल्म ‘बजरंगी भाईजान’ का क्लाइमेक्स सीन बैसरन घाटी में ही शूट हुआ था.
साल 2014 में आई फ़िल्म ‘हैदर’ के कई दृश्य बर्फ़ से ढकीं पहलगाम घाटी में फ़िल्माए गए थे. इसी साल आई फ़िल्म ‘हाईवे’ में पास के अरू घाटी के दृश्य हैं.
पहलगाम की ख़ूबसूरती सिने पर्दे और टीवी स्क्रीन के ज़रिए लोगों को यहाँ आने के लिए आकर्षित करती रही है.
पहलगाम है अमरनाथ यात्रा का अहम पड़ावपहलगाम हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख धार्मिक तीर्थयात्राओं में से एक अमरनाथ यात्रा में भी अहम भूमिका निभाता है.
भगवान शिव से जुड़े अहम स्थानों में से एक अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा को हिंदू धर्म में अहम माना जाता है.
हर साल होने वाली अमरनाथ यात्रा में अमरनाथ गुफ़ा तक जाने वाले कई रास्तों में से एक पहलगाम से होकर ही गुज़रता है.
अमरनाथ यात्रा के लिए 32 किलोमीटर की पैदल या घोड़ों पर बैठकर यात्रा शुरू करने से पहले बहुत से श्रद्धालु पहलगाम को ही बेस कैंप की तरह इस्तेमाल करते हैं.
बैसरन में ये हमला ऐसे समय हुआ है, जब अमरनाथ यात्रा की तैयारियाँ की जा रही हैं. इस साल अमरनाथ यात्रा तीन जुलाई से शुरू होगी. इस यात्रा के लिए इस क्षेत्र में सुरक्षा के भारी इंतज़ाम किए जा रहे हैं.
मंगलवार को पर्यटकों पर हुआ हमला एक दुर्लभ घटना है. होटल कारोबारी जावेद अहमद कहते हैं, “ये पर्यटकों के आने का समय है. इस हमले से पर्यटन उद्योग की कमर टूट गई है. किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस तरह मासूम पर्यटकों को निशाना बनाया जा सकता है.”
हालाँकि, इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर में बड़े चरमपंथी हमले हुए हैं. साल 2000 में नुवान बेस कैंप पर हुए हमले में कम से कम 32 लोग मारे गए थे. वहीं, साल 2002 में चंदनबाड़ी बेस कैंप पर हुए हमले में 11 लोगों की मौत हुई थी. साल 2017 में कुलगाम में तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर हमला हुआ था. इस हमले में कम से कम आठ लोगों की मौत हुई थी.
इस हमले ने पर्यटकों का विश्वास डगमगा दिया है. घूमने आए लोग जम्मू-कश्मीर छोड़ कर जा रहे हैं. अब देखना है कि इस भयानक घटना के बाद बैसरन की यह ख़ूबसूरत वादी पर्यटकों से फिर कब गुलज़ार हो पाती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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