बीजिंग के बीचोंबीच होने वाली सैन्य परेड में उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का साथ-साथ मौजूद होना अपने आप में बड़ा पल होगा.
यह शी जिनपिंग के लिए एक अहम कूटनीतिक जीत भी होगी.
चीनी राष्ट्रपति लंबे समय से दुनिया के सामने बीजिंग की ताक़त दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. वह सिर्फ़ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में नहीं, बल्कि एक मज़बूत कूटनीतिक खिलाड़ी के तौर पर भी अपनी पहचान बनाना चाहते हैं.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया है कि चीन एक स्थिर कारोबारी साझेदार है, जबकि ट्रंप के टैरिफ़ ने दुनियाभर के आर्थिक रिश्तों को अस्त-व्यस्त कर दिया है.
अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने के लिए पुतिन के साथ समझौते से दूर हैं, शी जिनपिंग पुतिन की बीजिंग में मेज़बानी की तैयारी कर रहे हैं.
किम की मौजूदगी, जिसका एलान अचानक किया गया है, कम अहम नहीं होगी. पिछले हफ़्ते दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाक़ात में ट्रंप ने कहा था कि वे एक बार फिर किम जोंग उन से मिलने की इच्छा रखते हैं.

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इस 'अलग-थलग पड़े तानाशाह' के साथ उनकी पिछली कूटनीतिक कोशिश किसी नतीजे तक नहीं पहुँची थी. दुनिया का ध्यान खींच लेने वाली दो शिखर वार्ताओं के बावजूद कोई ठोस सफलता नहीं मिली थी. अब ट्रंप संकेत दे रहे हैं कि वे फिर से कोशिश करना चाहते हैं.
इसी बीच चीनी राष्ट्रपति यह संकेत दे रहे हैं कि इस पूरे खेल के असली पत्ते उनके हाथ में हो सकते हैं. किम और पुतिन पर उनका प्रभाव सीमित ज़रूर है, लेकिन किसी भी समझौते में अहम साबित हो सकता है.
3 सितंबर को होने वाली परेड में चीन अपनी सैन्य ताक़त का प्रदर्शन करेगा. यह आयोजन दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की 80वीं बरसी की याद में होगा. तब चीन के हिस्सों पर उसका क़ब्ज़ा ख़त्म हुआ था.
लेकिन अब शी जिनपिंग ने इसे कुछ और दिखाने का मंच भी बना दिया है और समय भी बेहद अहम है. व्हाइट हाउस ने इशारा किया है कि राष्ट्रपति ट्रंप अक्तूबर के अंत में इस क्षेत्र में हो सकते हैं और वे शी जिनपिंग से मिलने के लिए तैयार हैं.
उनके सामने बात करने के लिए कई मुद्दे होंगे. इनमें लंबे समय से टलता टैरिफ़ समझौता, अमेरिका में टिकटॉक की बिक्री और यह सवाल भी शामिल होगा कि क्या चीन पुतिन को यूक्रेन युद्ध में युद्धविराम या किसी समझौते के लिए राज़ी कर सकता है.
अब जब शी जिनपिंग किम और पुतिन दोनों से मिल चुके होंगे तो ट्रंप से बातचीत करते समय उन्हें यह महसूस नहीं होगा कि उन्हें किनारे कर दिया गया है. बल्कि दोनों नेताओं के साथ उनके करीबी रिश्तों को देखते हुए संभव है कि उनके पास ऐसी जानकारी हो जो अमेरिकी राष्ट्रपति के पास न हो.
पश्चिमी दुनिया की नज़र में रूस और उत्तर कोरिया दोनों अलग-थलग माने जाते हैं. किम अपने हथियार कार्यक्रम की वजह से पुतिन से कहीं पहले से पश्चिम के निशाने पर हैं, लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमले का समर्थन करने से उनके ख़िलाफ़ निंदा फिर तेज़ हुई है.
ऐसे में बीजिंग का यह निमंत्रण किम के लिए बड़ा क़दम है. आख़िरी बार किसी उत्तर कोरियाई नेता ने चीन की सैन्य परेड में हिस्सा 1959 में लिया था.
2019 के बाद से शी और किम के बीच सार्वजनिक तौर पर बहुत कम संपर्क हुआ है. उस समय दोनों नेताओं ने चीन-उत्तर कोरिया संबंधों की 70वीं वर्षगांठ पर मुलाक़ात की थी. 2018 में भी किम जोंग उन की पहली विदेश यात्रा बीजिंग ही थी, जब वे राष्ट्रपति ट्रंप के साथ शिखर वार्ताओं से पहले प्योंगयांग के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत करने निकले थे.
क्या ये चीन के लिए बढ़त है?हाल के वर्षों में तो शी जिनपिंग गहराते रूस-उत्तर कोरिया गठजोड़ से लगभग अलग-थलग दिखे. ऐसा गठजोड़, जिसका हिस्सा शायद चीन बनना ही नहीं चाहता था.
यूक्रेन युद्ध पर चीन ने सार्वजनिक रूप से तटस्थ रहने की कोशिश की है और शांति समाधान की अपील की है. लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों ने उस पर आरोप लगाया है कि उसने रूस को ऐसे हथियार और पुर्ज़े मुहैया कराए हैं जिन्हें वह युद्ध में इस्तेमाल कर सकता है.
कुछ विश्लेषकों ने अंदाज़ा लगाया था कि किम के पुतिन के क़रीब आने से चीन और उत्तर कोरिया के रिश्तों में खटास आ गई है. लेकिन अगले हफ़्ते किम की बीजिंग यात्रा इस धारणा को ग़लत साबित करती है.
यह ऐसा रिश्ता नहीं है जिसे उत्तर कोरियाई नेता आसानी से छोड़ सकें. उनकी अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर चीन पर निर्भर है, जो उनके खाद्य आयात का लगभग 90 प्रतिशत मुहैया कराता है और सिर्फ़ पुतिन और शी ही नहीं, बल्कि इंडोनेशिया, ईरान जैसे अन्य नेताओं के साथ मंच पर खड़े होना किम को अतिरिक्त वैधता भी देता है.
शी जिनपिंग के लिए यह डोनाल्ड ट्रंप के साथ संभावित बातचीत से पहले कूटनीतिक बढ़त है.
अमेरिका-चीन के बीच बातचीत जारी है ताकि कोई समझौता हो सके और भारी टैरिफ़ और व्यापार युद्ध से बचा जा सके. 90 दिनों का एक और विराम लागू है, लेकिन समय निकलता जा रहा है. ऐसे में बातचीत के दौरान शी के पास मज़बूत स्थिति होनी ज़रूरी है.
उनके पास देने के लिए बहुत कुछ है. जब ट्रंप ने किम जोंग उन से मिलने की कोशिश की थी, तब चीन ने उनकी मदद की थी. क्या शी जिनपिंग फिर वही कर सकते हैं?
इससे भी ज़्यादा अहम सवाल यह है कि यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने में चीन क्या भूमिका निभा सकता है.
और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शी जिनपिंग, पुतिन, किम और डोनाल्ड ट्रंप की मुलाक़ात संभव है?
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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