पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में पुलिस और सुरक्षाबल कुछ चुनिंदा घरों को ध्वस्त कर रहे हैं.
22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए चरमपंथी हमले में 26 लोग मारे गए थे. इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर यह कार्रवाई जारी है.
अब तक कम से कम 10 घरों पर ये कार्रवाई हो चुकी है. बीबीसी हिंदी ने ऐसे ही दो परिवारों से बात की है. इनमें से एक परिवार आदिल हुसैन ठोकर का है.
पहलगाम हमले के बाद अनंतनाग पुलिस ने जिन तीन चरमपंथियों के स्केच जारी किए थे, उनमें आदिल हुसैन ठोकर का भी नाम शामिल है.
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हालांकि, घर को ध्वस्त करने की कार्रवाई पर पुलिस या सुरक्षाबलों की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है.
पुलिस ने पूछताछ के लिए कई लोगों को हिरासत में भी लिया है, लेकिन इसको लेकर कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की है.
बीबीसी ने डीजी समेत वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से इस बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन ख़बर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला. जब भी पुलिस या प्रशासन इस बारे में कोई बयान देगा उसे यहां शामिल कर लिया जाएगा.
आदिल ठोकर के परिवार का कहना है कि 25 अप्रैल की रात सेना और पुलिस उनके घर पहुंची थी.
आदिल ठोकर की मां शहज़ादा बानो कहती हैं, "रात के 12:30 बजे तक सेना और पुलिस के लोग यहां मौजूद थे. मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा कि हमारे साथ इंसाफ किया जाए और पूछा कि हमारी क्या ग़लती है. लेकिन उन्होंने मुझसे चलने को कहा और हमें दूसरे घर में भेज दिया."
उन्होंने बताया, "रात के 12.30 बजे जबरदस्त ब्लास्ट हुआ. पूरे मोहल्ले को 100 मीटर दूर रहने के लिए कहा गया. सभी लोगों को वहां से हटा दिया गया. कुछ लोग सरसों के खेतों में चले गए और कुछ ने दूसरे घरों में शरण ले ली."
शहज़ादा बानो ने कहा, "हमारे घर में उस समय कोई नहीं था. मेरे दो बेटे और पति को पुलिस ने बंद कर दिया है. हमारे पास कोई सहारा नहीं बचा है."
शहज़ादा बानो ने बताया कि आदिल साल 2018 से ग़ायब है.
ऐसी ही कार्रवाई कुलगाम ज़िले के मतलहामा गांव में ज़ाकिर अहमद के घर पर भी की गई है. परिवार का कहना है कि ज़ाकिर 2023 में घर से ग़ायब हो गया था और उसके बाद से उसका कोई पता नहीं चला.
ज़ाकिर के पिता ग़ुलाम मोहिउद्दीन का कहना है कि उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई थी, जिसके बाद पुलिस और सेना ने बताया कि उनका बेटा एक चरमपंथी संगठन में शामिल हो गया है.
ग़ुलाम मोहिउद्दीन ने बताया, "जब हमारे घर को धमाके से ध्वस्त किया गया, तब रात के दो बजकर तीस मिनट हो गए थे. हमें मस्जिद में रखा गया था, उसी समय ब्लास्ट किया गया."
उन्होंने दावा किया, "अब तक हमें नहीं पता कि ज़ाकिर अहमद ज़िंदा है या मर गया है. हमसे उसका कभी कोई संपर्क नहीं हुआ. सेना और गांव वाले भी जानते हैं कि उसने हमें कभी चेहरा नहीं दिखाया."
मोहिउद्दीन कहते हैं, "हमारा सब कुछ मकान में ही दब गया. हम कुछ भी अपने साथ नहीं निकाल सके. हमारी एक छोटी बच्ची है, उसे हमने फेरन में लपेटकर ढका. जो कपड़े आज हमने पहने हैं, वही कुछ बचा पाए हैं. उस रात हम बस अपनी जान बचा सके."
ज़ाकिर की बहन रुकैया का भी ऐसा ही दावा है कि उन्होंने अपने भाई को कई सालों से नहीं देखा.
बीबीसी से बातचीत में वे कहती हैं, "हमारे लिए वह तब ही मर गया था जब वह घर से निकला था. इस समय हमें मालूम नहीं है कि वह ज़िंदा है या नहीं."
रुकैया कहती हैं, "हमने अपनी आंखों से कुछ नहीं देखा है. आज परिवार पर बहुत ज़ुल्म किया गया है. मेरे दो और भाई पुलिस की हिरासत में हैं. मेरे चाचा का इकलौता बेटा भी बंद है."
उन्होंने कहा, "ज़ाकिर को परिवार का समर्थन नहीं है. मैं कहती हूं कि वह जहां भी है, उसे पकड़कर ख़त्म कर दिया जाए. हम हाथ जोड़कर इंसाफ़ की मांग कर रहे हैं. हमें और कुछ नहीं चाहिए."
सेना, पुलिस या जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से अभी तक इन कार्रवाइयों पर कोई आधिकारिक बयान साझा नहीं किया गया है.
इन कार्रवाईयों पर कुछ लोग सवाल भी उठा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में रहने वाले क़ानून के जानकार एडवोकेट हबील इक़बाल कहते हैं कि इस तरह की कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों का पूरी तरह से उल्लंघन है.
उनका मानना है, "यह सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसले की स्पष्ट अवमानना है. असल में, इससे भी आगे बढ़कर, सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ तौर पर मकानों को गिराने के मामलों पर बात की है."
वे कहते हैं, "चाहे नोटिस दिया गया हो या न दिया गया हो, दिनदहाड़े मकान गिराए गए. सुप्रीम कोर्ट ने इसे कलेक्टिव पनिशमेंट क़रार दिया है. कोर्ट का कहना है कि ऐसा कोई भी काम किसी भी क़ानून के तहत स्वीकार्य नहीं है. यह रूल ऑफ़ लॉ के ख़िलाफ़ है."
हबील इक़बाल ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल साफ़ कहा है कि ये सामूहिक सज़ा है. आपराधिक क़ानून व्यवस्था में ऐसा नहीं होता कि किसी पर आरोप लगे और आप उसके पूरे परिवार या घर पर कार्रवाई करें."
"यह सब संविधान के ख़िलाफ़ है, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के ख़िलाफ़ है और कानून के शासन के ख़िलाफ़ है. दुनिया के किसी भी क़ानून में, चाहे वह आपराधिक क़ानून व्यवस्था हो, संविधान हो, अंतरराष्ट्रीय मानक हों या सभ्यता के अंतरराष्ट्रीय नियम, इस तरह की कार्रवाई की इजाज़त नहीं है."
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर इन कार्रवाइयों पर सवाल उठाए.
उन्होंने लिखा, "भारत सरकार को पहलगाम हमले के बाद सतर्कता बरतते हुए आतंकवादियों और निर्दोष नागरिकों में फ़र्क़ करने की ज़रूरत है. सरकार को उन लोगों को अलग थलग नहीं करना चाहिए जो आतंक का विरोध कर रहे हैं."
महबूबा मुफ़्ती ने लिखा, "ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि हज़ारों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और आतंकवादियों के घरों के साथ आम कश्मीरियों के घरों को भी ढहा दिया गया है. सरकार से अपील है कि वह अधिकारियों को निर्देश दे कि वे निर्दोष लोगों पर कार्रवाई ना करें."
उन्होंने लिखा कि अगर आम लोगों ख़ुद को अलग थलग महसूस करेंगे तो इससे आतंकवादियों के मनसूबों को बल मिलेगा.
वहीं जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने एक्स पर लिखा, "पहलगाम आतंकी हमले के बाद आतंकवाद के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई ज़रूरी है. कश्मीर के लोगों ने खुले तौर पर आतंकवाद और निर्दोष लोगों की हत्या के ख़िलाफ़ आवाज उठाई है और यह काम उन्होंने ख़ुद से किया है. अब समय आ गया है कि लोगों के इस समर्थन को और बल दिया जाए ना कि कोई ऐसा काम किया जाए जिससे वे ख़ुद को अलग थलग महसूस करें."
उन्होंने लिखा, "दोषियों को कड़ी सजा दी जाए. उन पर कोई रहम न किया जाए, लेकिन ये ध्यान भी रखा जाए कि निर्दोष लोग इसकी ज़द में ना आएं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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