राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने गुरुवार को कहा कि 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से दो किताबें हटाई जाएँगी। मंत्री ने दावा किया कि ये किताबें गांधी परिवार के कुछ नेताओं का ही महिमामंडन करती हैं। दिलावर की इस घोषणा ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने इसे वैचारिक हमला बताते हुए आरोप लगाया कि यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
दिलावर ने आरोप लगाया, "'आज़ादी के बाद का स्वर्णिम भारत' पुस्तक के भाग 1 और 2 में कांग्रेस के कुछ नेताओं का ही महिमामंडन किया गया है।" दिलावर ने गुरुवार को यहाँ पत्रकारों से कहा, "इस पुस्तक में सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. बीआर अंबेडकर और जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे महान नेताओं का नाम तक नहीं है। इन पुस्तकों में सिर्फ़ और सिर्फ़ गांधी परिवार का महिमामंडन किया गया है, जिन्होंने अपने स्वार्थ, पद और सत्ता के लिए देश में आपातकाल लगाया। लोकतंत्र की हत्या की गई और संविधान को निलंबित कर दिया गया।"
दिलावर ने कहा, 'हम अपने छात्रों को ऐसी किताबें नहीं पढ़ने देंगे। साथ ही, ये किताबें पाठ्यक्रम में अतिरिक्त हैं और परीक्षाओं में अंकों के लिए इनका कोई महत्व नहीं है। फिर छात्रों पर बोझ क्यों?'उन्होंने कहा कि इस किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जैसे लोगों का ज़िक्र होना भी उतना ही ज़रूरी है।
गोविंद सिंह डोटासरा ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी।
इस बीच, कांग्रेस नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, 'शिक्षा मंत्री द्वारा 12वीं कक्षा की उन किताबों पर अनावश्यक विवाद पैदा करके उन्हें पाठ्यक्रम से हटाने का बयान, जो सशक्त भारत के निर्माण में महापुरुषों के योगदान को बताती हैं, आरएसएस की संकीर्ण सोच और शिक्षा व्यवस्था पर एक वैचारिक हमला है।'उन्होंने कहा कि 12वीं कक्षा की ये किताबें भाजपा सरकार की अनुमति के बाद छपवाई गई हैं और शिक्षा मंत्री व अधिकारियों ने खुद किताबों की छपाई को मंज़ूरी दी है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि 4 लाख 90 हज़ार किताबें छप चुकी हैं और 80 प्रतिशत किताबें छात्रों को वितरित की जा चुकी हैं। उनके अनुसार, ऐसे में सवाल यह है कि अब इन किताबों को पाठ्यक्रम से हटाने का क्या औचित्य है?उन्होंने पूछा कि मंत्री जी को अब इन किताबों में कौन सी खामी नज़र आ रही है, जो उन्हें पहले नहीं दिखी और क्या मंत्री जी और सरकार के ज़िम्मेदार अधिकारियों ने मंज़ूरी देने से पहले इसकी जाँच की थी?
डोटासरा ने 'X' पर लिखा, "किताबों से पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को हटाना सिर्फ़ पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में सोच की दिशा बदलने की कोशिश है। दरअसल, मंत्री जी का मक़सद सिर्फ़ किताबों के ज़रिए छात्रों पर आरएसएस की विचारधारा और भाजपा की राजनीतिक सोच थोपना है।" उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की भाजपा सरकार इतिहास को तोड़-मरोड़कर और साज़िश के ज़रिए एकतरफ़ा शिक्षा देकर आरएसएस की घृणित सोच को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहती है।कांग्रेस नेता ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो यह न सिर्फ़ छात्रों के भविष्य के लिए चिंताजनक संकेत होगा, बल्कि उनमें संकीर्ण और विघटनकारी सोच का कारण भी बन सकता है।
डोटासरा के अनुसार, जब वे शिक्षा मंत्री थे, तब पाठ्यक्रम में चार पुस्तकें शामिल की गई थीं, जिनमें स्वतंत्रता के बाद पूर्व प्रधानमंत्रियों और युगपुरुषों के अमिट योगदान को शामिल किया गया है।उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत की नींव रखने से लेकर एक सशक्त भारत के निर्माण, देश के पोषण और विश्व में शक्ति का केंद्र स्थापित करने तक, यही उनका योगदान है।
कांग्रेस नेता ने पूछा, "क्या भाजपा सरकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखने वाले हिंद के जवाहरलाल नेहरू की विरासत को मिटाना चाहती है? क्या वह भारत को शून्य से शिखर तक ले जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के दूरदर्शी नेतृत्व में निर्मित आईआईटी, आईआईएम, इसरो, योजना आयोग, एम्स और शिक्षा एवं सामाजिक न्याय के योगदान को मिटाना चाहती है?"
डोटासरा ने यह भी पूछा, "क्या भाजपा सरकार देश की एकता और अखंडता के लिए बलिदान देने वाली 'लौह महिला' इंदिरा गांधी के मजबूत इरादों से लिए गए पाकिस्तान के दो टुकड़े, पोखरण में परमाणु परीक्षण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण आदि जैसे ऐतिहासिक फैसलों को छिपाना चाहती है?"डोटासरा ने पूछा, "क्या यह सरकार आधुनिक भारत के निर्माता और देश को कंप्यूटर युग में लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा शुरू की गई कंप्यूटर और दूरसंचार क्रांति और पंचायती राज को मज़बूत करने के प्रयासों को मिटाना चाहती है?"
उन्होंने सवाल उठाया, "क्या भाजपा देश में उदारीकरण और आर्थिक सुधारों के प्रणेता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मनमोहन सिंह के योगदान को कमतर आंकती है? जिनके कुशल नेतृत्व में भारत की जनता को मनरेगा, भोजन का अधिकार, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसी कल्याणकारी नीतियाँ और अधिकार मिले।"
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