राजस्थान को जब भी रेगिस्तान, किले और महलों के लिए जाना जाता है, तो बांसवाड़ा इसका एक ऐसा हिस्सा है जो इन छवियों को पूरी तरह से बदल देता है। ‘City of Hundred Islands’ यानी "सौ द्वीपों का शहर" के नाम से प्रसिद्ध बांसवाड़ा राज्य के दक्षिणी छोर पर बसा है और हरे-भरे जंगलों, नीले जलाशयों और झीलों से भरा यह जिला प्रकृति प्रेमियों और सुकून की तलाश में निकले सैलानियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
बांसवाड़ा की खूबसूरती में झलकती है प्रकृति की कारीगरी
बांसवाड़ा का नाम बांस के घने जंगलों के कारण पड़ा था। चारों ओर फैली हरियाली, सुरम्य घाटियाँ और साफ-सुथरे जलस्रोत इस क्षेत्र को राजस्थान के अन्य जिलों से अलग बनाते हैं। यहां की सबसे बड़ी खासियत है माही नदी, जिसके किनारे कई खूबसूरत टापू बने हुए हैं। यही वजह है कि बांसवाड़ा को ‘City of Hundred Islands’ कहा जाता है। माही बांध से बनी इस झील में फैले छोटे-छोटे द्वीपों पर नाव की सवारी करना किसी रोमांचक अनुभव से कम नहीं।
माही बांध और झील: बांसवाड़ा की पहचान
माही नदी पर बना माही डेम या माही बजाज सागर परियोजना बांसवाड़ा का प्रमुख आकर्षण है। यह न सिर्फ जल संसाधनों और बिजली उत्पादन का स्रोत है, बल्कि यह झील पर्यटकों के लिए भी किसी जन्नत से कम नहीं। डूबते सूरज की रोशनी में झील के पानी पर बिखरती सुनहरी आभा हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देती है।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर: आस्था और वास्तुकला का संगम
बांसवाड़ा का एक और प्रमुख स्थल है त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, जिसे 'माँ त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ' भी कहा जाता है। यह मंदिर देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहाँ की अद्भुत मूर्ति, जिसमें माँ के 18 हाथ हैं, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को एक साथ आकर्षित करती है। नवरात्रि के समय यहां विशेष भीड़ उमड़ती है और मंदिर क्षेत्र में भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
कुशालगढ़ किला: इतिहास की झलक
कुशालगढ़ किला बांसवाड़ा जिले का ऐतिहासिक गहना है। इस किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में महारावल लूणाराज ने करवाया था। किले की बनावट और स्थापत्य शैली मेवाड़ी और मुगल वास्तुकला का मेल दिखाती है। ऊँचाई पर स्थित यह किला कभी एक मजबूत सामरिक केंद्र हुआ करता था, जो आज पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
आनंदपुरी की पहाड़ियाँ और आदिवासी संस्कृति
बांसवाड़ा की एक और खास बात है यहां की आदिवासी संस्कृति। आनंदपुरी, गढ़ी और लोहारिया जैसे क्षेत्र न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं, बल्कि यहाँ की भील जनजाति की संस्कृति, लोक नृत्य, और पारंपरिक खान-पान सैलानियों को एक नया अनुभव देती है। गवरी, भगोरिया जैसे लोक उत्सवों में यहां की रंग-बिरंगी सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है।
कब जाएं बांसवाड़ा?
बांसवाड़ा की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और झीलों तथा पहाड़ियों की सुंदरता अपने चरम पर होती है।
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