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'जयपुर की ज्यौणार' में उमड़ा जनसैलाब!! 50 हजार लोगों ने चखा दाल-बाटी-चूरमे का स्वाद,जानिए परम्परा का 250 साल पुराना इतिहास

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हल्की बूंदाबांदी के बीच दाल, बाटी, चूरमा की खुशबू से आसपास का परिसर महक उठा, देसी व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए कतारों में खड़े नागरिक। रविवार को एक अनूठे आयोजन के साथ एक बार फिर रियासतकालीन परंपरा में यह नजारा देखने लायक रहा। खास तौर पर यह दिन पुरानी परंपराओं की मिठास और सामाजिक एकता की खुशबू से सराबोर रहा। जयपुर की सांस्कृतिक विरासत के तहत करीब 110 साल बाद एक साथ 50 हजार लोगों ने दाल-बाटी चूरमा और देसी घी के पारंपरिक व्यंजनों का लुत्फ उठाकर 'जयपुर की ज्योनार' को यादगार बना दिया। ज्योनार में कूपन के जरिए प्रवेश दिया गया। कूपन के आधार पर निकाले गए लकी ड्रॉ में 24 इंच की एलईडी टीवी, फ्रिज, कूलर, मिक्सर और 10 चांदी के सिक्के इनाम में दिए जा रहे हैं।

'जयपुर की ज्योनार' कार्यक्रम का आयोजन जयपुर हेरिटेज निगम की महापौर कुसुम यादव के नेतृत्व में सांगानेरी गेट स्थित अग्रवाल कॉलेज सभागार में किया गया। 11 घंटे चले इस कार्यक्रम में 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने दाल, बाटी और चूरमा का लुत्फ़ उठाया। इस दौरान कई मंत्री, जनप्रतिनिधि, सामाजिक और व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। हेरिटेज नगर निगम की महापौर कुसुम यादव के साथ आयोजन समिति के प्रतिनिधि रमेश नारनौली, मातादीन सोनी, कैलाश मित्तल, अजय यादव, नारायणलाल मुंगेवाला, हरीश अग्रवाल आदि ने शहरवासियों का स्वागत किया।

ये रहा ख़ास

इस दौरान लोकगीत-संगीत के साथ जयपुर की गौरवशाली विरासत की झांकी भी प्रस्तुत की गई। खाने के लिए चौकड़ी वास्तुकला के अनुसार बैठने की व्यवस्था की गई थी। कुसुम यादव ने बताया कि ज्यौनार का उद्देश्य सिर्फ़ भोजन नहीं है। इसके ज़रिए हमने साझी विरासत की झांकी सजाने की कोशिश की। पहले जब राजा-महाराजा युद्ध जीतकर लौटते थे या कोई ख़ास अवसर होता था, तो पूरे शहरवासियों के लिए सामूहिक भोजन (ज्यौनार) का आयोजन किया जाता था। हर वर्ग, धर्म, समाज के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे। रमेश नारनौली ने बताया कि अगली बार एक लाख लोगों के लिए व्यवस्था की जाएगी।

इतनी सामग्री का इस्तेमाल

जयपुर के राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही 'ज्योनार' की परंपरा 110 साल बाद एक बार फिर जीवंत हो उठी है। तीन विशाल वाटरप्रूफ गुंबदों में एक साथ चार हज़ार लोगों ने प्रसादी ग्रहण की। संयोजक कैलाश मित्तल ने बताया कि 500 रसोइयों ने तीन दिन तक लगातार भोजन तैयार किया। पारंपरिक भोजन में 12 हज़ार 500 किलो आटा-बेसन, 1500 किलो दाल, 1200 किलो मावा, 160 बैरल देसी गाय का घी और अन्य मसालों का इस्तेमाल किया गया।

250 साल पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास

यह परंपरा राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही है, जब लोगों के लिए बड़े पैमाने पर भोज का आयोजन किया जाता था। अब व्यापारी और समाज मिलकर इसे पुनर्जीवित कर रहे हैं। आयोजन समिति ने शाम चार बजे तक ज्योनार में 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को भोजन कराने का दावा किया। हालाँकि, शाम के बाद लोग फिर से आने लगे। आयोजन स्थल के बाहर एक किलोमीटर तक लंबी कतार लग गई थी।

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