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लीक्ड वीडियो में जाने जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर से जुड़े 8 अनसुने रहस्य, जो शायद ही आपको पहले पता हों

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राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित गोविंद देव जी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि यह मंदिर इतिहास, संस्कृति और भक्ति का जीवंत संगम भी है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु रोज इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन इसके पीछे छिपे कई रोचक तथ्य और गूढ़ रहस्य हैं, जिनसे आज भी अधिकतर लोग अनजान हैं। आइए, इस लेख के माध्यम से जानते हैं गोविंद देव जी मंदिर से जुड़े वे अननोन फैक्ट्स जो कम ही लोगों को पता हैं।

1. भगवान श्रीकृष्ण की असली प्रतिमा

गोविंद देव जी मंदिर में जो प्रतिमा विराजमान है, वह भगवान श्रीकृष्ण की सात मूल प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है, जिन्हें स्वयं श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने बनाया था। ऐसी मान्यता है कि यह प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप से मिलती-जुलती है, और यही कारण है कि इसे इतना विशेष दर्जा प्राप्त है।

2. वृंदावन से जयपुर तक की यात्रा

गोविंद देव जी की यह दिव्य प्रतिमा मूल रूप से वृंदावन में स्थापित थी। लेकिन मुगल शासकों द्वारा मंदिरों के विध्वंस के समय इसे वहां से हटाकर पहले आमेर, और फिर बाद में जयपुर लाया गया। जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इस मूर्ति के लिए विशेष रूप से सिटी पैलेस के पास यह मंदिर बनवाया, ताकि वे अपने महल से ही प्रभु के दर्शन कर सकें।

3. मुगल सम्राट और मंदिर की रक्षा

यह बात कम ही लोग जानते हैं कि जब गोविंद देव जी की मूर्ति को जयपुर लाया गया, तब इसे लेकर भय था कि इसे मुगल शासक औरंगज़ेब नष्ट कर सकता है। लेकिन सवाई जय सिंह द्वितीय की चतुराई और तत्कालीन राजनीति के संतुलन ने मूर्ति की रक्षा सुनिश्चित की। उन्होंने मंदिर को राजधानी के हृदय में स्थापित कर दिया, जिससे किसी प्रकार की तोड़फोड़ असंभव हो गई।

4. पूरे दिन सात बार होती है आरती और भोग

दर्शन की सुविधा के लिए प्रभु के लिए दिनभर में सात बार आरती और भोग की व्यवस्था की जाती है, जिसे 'झांकी दर्शन' कहा जाता है। हर झांकी का अपना विशेष महत्व है — जैसे मंगल झांकी, श्रंगार झांकी, ग्वाल झांकी आदि। ये झांकियां न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि मंदिर की परंपरा और संस्कृति को भी जीवित रखती हैं।

5. मंदिर की वास्तुकला में छुपी है वैज्ञानिकता

गोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला इतनी अद्भुत है कि सिटी पैलेस से सीधी रेखा में बने खिड़की से राजा अपने कक्ष से ही प्रभु के दर्शन कर सकते थे। यह डिजाइन एक विशेष कोण पर रखा गया है ताकि बिना किसी बाधा के सीधा दृश्य प्राप्त हो सके।

6. सालों पुरानी परंपराएं अब भी जीवित

आज भी मंदिर में दूध, माखन, मिश्री, फूलों और खास वस्त्रों से विशेष श्रृंगार होता है। त्योहारों के समय मंदिर का भव्य सजावट और सज्जा देखती ही बनती है। जन्माष्टमी, राधाष्टमी, और गोकुल अष्टमी जैसे त्योहारों पर लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।

7. गोविंद देव जी मंदिर के कारण बनी थी जयपुर की प्लानिंग

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि जयपुर शहर की जो ग्रिड-प्लानिंग हुई थी, उसमें गोविंद देव जी मंदिर को केंद्रबिंदु माना गया था। पूरा शहर तीन दरवाजों और मुख्य मार्गों के अनुसार इस तरह बसाया गया था कि प्रमुख धार्मिक स्थलों को प्राथमिकता मिले।

8. जागरूकता से जुड़ा मंदिर का योगदान

मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि सामाजिक सेवा का केंद्र भी है। यहां समय-समय पर भोजन वितरण, विवाह सामूहिक आयोजन, धार्मिक प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

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